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गुप्तकालीन धार्मिक स्थिति

 

गुप्तकालीन धार्मिक स्थिति



गुप्तों का समय ब्राह्मण धर्म एवं हिंदू धर्म के पुनरुत्थान का समय माना जाता है। यह काल एक नया दर्शन लेकर उपास्थित हुआ। तत्कालीन महत्वपूर्ण संप्रदाय के रूप में वैष्णव एवं शैव संप्रदाय प्रचलन में आया। 

हिंदू धर्म में विकास यात्रा के इस चरण में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देतें हैं, जैसे:- मूर्ति पूजा हिंदू धर्म का सामान्य लक्षण हो गया, यज्ञ का स्थान उपासना ने ले लिया। 

गुप्त काल में ही वैष्णव एवं शैव धर्म के मध्य समन्वय स्थापित हुआ ईश्वर भक्ति को महत्व दिया गया। तत्कालीन महत्वपूर्ण संप्रदाय के रूप में वैष्णव एवं शैव संप्रदाय प्रचलन में थे। 


वैष्णव धर्म:-

वैष्णव धर्म गुप्त काल में अपने चरणों पर था तथा अवतारवाद वैष्णव धर्म का प्रधान अंग था। 

यह गुप्त शासकों का व्यक्तिगत धर्म था। अनेक गुप्त राजाओं ने परम भागवत की उपाधि धारण की। 

राजाओं ने अपनी राज आज्ञाएं गरुड़ध्वज से अंकित करवाई। 

चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ की आकृति खुद ही मिली है।  

इसके अतिरिक्त वैष्णव धर्म के कुछ अन्य चिन्ह, जैसे:- शंख, चक्र, गदा, पद्म, लक्ष्मी का अंकन भी गुप्तकालीन सिक्कों पर मिलता है। 

समुद्रगुप्त के सिक्के

चन्द्रगुप्त-II के सिक्के









गुप्तकालीन महत्वपूर्ण अभिलेख स्कंदगुप्त का जूनागढ़ एवं बुधगुप्त का एरण अभिलेख स्तुति से प्रारंभ हुआ है। 

चक्रपाली का नाम के गुप्तकालीन कर्मचारी ने विष्णु के एक मंदिर का निर्माण करवाया था। 

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने विष्णुपद पर्वत के शिखर पर विष्णु ध्वज की स्थापना की। 

गुप्तकालीन कुछ अभिलेखों ने विष्णु को मधुसूदन कहा गया है। 


चन्द्रगुप्त-द्वितीय विक्रमादित्य से सम्बन्धित मत्वपूर्ण तथ्य

स्कंदगुप्त से सम्बन्धित मत्वपूर्ण तथ्य

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शैव धर्म:- 

गुप्त राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता की भावना के कारण ही शैव धर्म का विकास इस काल में हुआ। जबकि गुप्तों का व्यक्तिगत धर्म वैष्णव धर्म था। 

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का सेनापति वीरसेन प्रकांड शैव विद्वान था। उसने उदयगिरी पर्वत के अंदर शैवों के निवास के लिए गुफा का निर्माण करवाया था।  

गुप्त काल में भगवान शिव की मूर्तियां मानवी आकार एवं लिंग के रूप में बनाएं। शिव के अर्धनारेश्वर रूप की कल्पना एवं शिव तथा पार्वती की एक साथ मूर्तियों का निर्माण सर्वप्रथम इसी काल में हुआ। 

अर्धनारेश्वर 

अर्धनारेश्वर








शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाले भगवान हरिहर की मूर्तियों का निर्माण गुप्त काल में ही हुआ। 

हरिहर की मूर्ति

हरिहर की मूर्ति








त्रिमूर्ति पूजा के अंतर्गत इस समय ब्रह्मा विष्णु महेश की पूजा आरंभ हुए। 

गुप्तों के समय में मथुरा में महेश्वर नाम का शिव संप्रदाय निवास कर रहा था 

कालिदास के मेघदूत के वर्णन में उज्जयिनी में एक महाकाल के मंदिर का वर्णन है.

शैव धर्म का एक और अनुयाई पृथ्वीषेण जो कुमारगुप्त प्रथम का सेनापति था ने करमदण्डा नामक स्थान पर एक शिव की प्रतिमा स्थापित की। 

सामंत महाराज हस्तिन के खोह अभिलेख में नमो महादेव का उल्लेख है। 

वामन पुराण के वर्णन के अनुसार गुप्त काल में चार शैव संप्रदायों का वर्णन है: शैव, पाशुपत, कापालिक, कालामुंख।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त काल में वैष्णव धर्म के सामने शैव धर्म की अवहेलना नहीं की गई।

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सूर्य पूजा:-

गुप्त काल में सूर्योपासक लोगों का भी संप्रदाय था। 

विक्रम संवत 529 के मंदसौर शिलालेख के प्रारंभिक कुछ श्लोकों में सूर्य भगवान की स्तुति की गई है। 

सूर्य देव


बुलंदशहर जिले के माडास्यात नामक स्थल पर सूर्य मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 

मिहिरकुल के ग्वालियर अभिलेख से मातृचेट नामक नागरिक द्वारा ग्वालियर के पर्वत श्रृंग पर एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाने के साक्ष्य मिले हैं। 



बौद्ध धर्म:- 

यद्यपि गुप्त शासकों ने इस धर्म को अपना संरक्षण प्रदान नहीं किया, फिर भी यह धर्म विकसित हुआ। 

इनके समय में बौद्ध धर्म के मुख्य केंद्र बन गया मथुरा, कौशांबी एवं सारनाथ। 

गुप्तों के समय में ही प्रसिद्ध बौद्ध विहार नालंदा की स्थापना की गई। 

नालंदा विहार


सांची के एक लेख के अनुसार चंद्रगुप्त द्वितीय ने किसी आम्रकद्रका नाम के बौद्ध धर्म के अनुयाई को अपने राज्य में ऊंचे पद पर नियुक्त किया था। 

गुप्तकाल के प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य वसुबंधु, असंग एवं दिंगनाथ थे। 

इन आचार्यों ने अपने विद्वता के द्वारा भारतीय ज्ञान के विकास में सहयोग दिया। 

चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार गुप्त काल में बौद्ध धर्म अपने स्वाभाविक रूप से विकसित हो रहा था। 

बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अंतर्गत माध्यमिक एवं योगाचार संप्रदाय का विकास हुआ 

इसमें योगाचार संप्रदाय गुप्तों के समय काफी प्रचलित था। 

गुप्त काल में ही आर्यदेव ने चतुश्शतक एवं असंग ने महायान संग्रह, योगाचार भूमिशास्त्र तथा महायान सूत्रालंकार जैसे ग्रंथ की रचना की। 


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जैन धर्म:- 

गुप्त काल में जैन धर्म का भी विकास हुआ। 

गुप्तों के समय में ही मथुरा में (313 ई.) एवं वल्लभी में (553 ई.) में जैन सभा आयोजित की गई। 

इस समय मूर्तियों के निर्माण के अंतर्गत महावीर एवं अन्य तीर्थंकर की सीधी सीधी खड़ी हुई एवं पालकी मारकर बैठी हुई मूर्तियां निर्मित की गई। 

गुप्त काल में जैन धर्म मध्यमवर्गीय लोगों एवं व्यापारियों में खूब प्रचलित था। 

कदंब एवं गंग राजाओं ने इस धर्म को संरक्षण प्रदान किया। 

गुप्तों के समय जैन धर्म मगध से लेकर कलिंग, मथुरा, उदयगिरी, तमिलनाडु तक फैला था। 


षड्दर्शन:- 

सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व एवं उत्तर मीमांसा (वेदांत) की महत्वपूर्ण कृतियों की रचना गुप्त युग में ही हुई। 






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