स्कंदगुप्त (455-467 ई.)
स्कंदगुप्त को राजसिंहासन पर बैठते ही जूनागढ़ अभिलेख में म्लेच्छ के रूप में उल्लेखनीय हूणों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। जिसमें स्कंद गुप्त को सफलता मिली।
स्कंदगुप्त ने इस सफलता का वर्णन जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।
स्कंदगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार कराया था।
स्कंदगुप्त को :-
कहौल स्तंभ लेख में शक्रोपम,
आर्यमंजुश्रीमूलकल्प में देवराय एवं
जूनागढ़ अभिलेख में श्री परीक्षिप्तवृक्षा नाम कहा गया है।
स्कन्दगुप्त के इंदौर ताम्रपत्र में सूर्य पूजा, सूर्य मंदिर में दीपक जलाए जाने के लिए दान दिए जाने का उल्लेख है।
इसके रजत मुद्राओं पर शिव के वाहन नंदी की आकृति प्राप्त होती हैं।
इनकी स्वर्ण मुद्राओं पर विक्रमादित्य की उपाधि मिली है।
स्कंदगुप्त सौराष्ट्र में पर्णदत्त को गवर्नर के रूप में नियुक्त किया।
सुदर्शन झील के पुनरुत्थान का कार्य चक्रपालित को सौंपा था जिसने झील के किनारे एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था।
चीनी यात्री सुंगयून (जिसने 515 से 520 के बीच भारत की यात्रा की थी) ने तिगिन को हूणों का प्रथम राजा माना जो गांधार पर शासन करता था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य
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