रामगुप्त
रामगुप्त यह प्रमाणित हो गया है कि समुद्र गुप्त का उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त द्वितीय नहीं अपितु राम गुप्त था। रामचंद्र गुणचन्द्र कृत "नाटक दर्पण" से ज्ञात होता है कि रामगुप्त समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी था।
विशाखदत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम नाटक में सर्वप्रथम रामगुप्त का अस्तित्व प्रकाश में आया।
विशाखदत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम नाटक से ज्ञात कि रामगुप्त एक अयोग्य और अशक्त शासक था। शक राजा ने उसे इस बात पर विवश कर दिया कि वह अपनी रानी ध्रुवदेवी को उसे दे दे। चंद्रगुप्त द्वितीय ध्रुवदेवी के वेश में शक राजा की हत्या कर दी बाद में रामगुप्त की भी हत्या कर सिंहासन पर बैठा।
बाण के हर्षचरित से शम्पतिमशातन्य शब्द मिलता है जिसका मेल रामगुप्त रूप से किया जाता है।
राजशेखर की काव्यमीमांसा में हुआ ध्रुवदेवी के नाम का श्लोक है जिसमें यह वर्णन मिलता है कि चंद्रगुप्त ने राम गुप्त की हत्या कर दी तथा ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया। काव्यमीमांसा के शर्मगुप्त या सेनगुप्त को ही रामगुप्त माना गया है।
मुद्रा साक्ष्य:-
रामगुप्त ने कुछ तांबे के सिक्के विदिशा उदयगिरी से प्राप्त हुए हैं, जिन पर रामगुप्त वर्णन है, गरुड़ अंकित है, तथा तिथि गुप्तकालीन है।
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