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11 मूल-कर्तव्य कौन-कौन से हैं ?

-: मौलिक-कर्त्तव्य :- 

Maulik-Kartavya
Maulik-Kartavya


  • संविधान में उल्लेख :- भाग 4-क तथा अनुच्छेद 51-क में। 

  • मूल-संविधान में नागरिकों के मूल कर्तव्यों का कोई उल्लेख नहीं था। 

  • 1976 में संविधान के पुनरीक्षण के लिए गठित स्वर्ण सिंह समिति की रिपोर्ट के आधार पर इसे संविधान में जोड़ा गया। 

  • 42वां संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग 4-क तथा अनुच्छेद 51-क को जोड़कर 10 मूल कर्तव्य को सम्मिलित किया गया। 

  • 86 वां संविधान संशोधन अधिनियम-2002 द्वारा संविधान के भाग-4 के अनुच्छेद-51 में संशोधन करते हुए 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्रदान करने संबंधी अभिभावकों का कर्तव्य निर्धारित किए गया है। 

  • इस प्रकार वर्तमान में भारतीय संविधान में 11 प्रकार के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। 

  • नागरिकों के मूल-कर्तव्य पूर्व सोवियत संघ के संविधान से ग्रहण किये गया है। 



नागरिकों के 11 मूल-कर्तव्य इस प्रकार हैं :-



1) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें। 

2) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें
और उनका पालन करें। 

3) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखें। 

4) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। 

5) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें, जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो। 

6) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करें। 

7) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील ,नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखे। 

8) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। 

9) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें। 

10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले। 

11) जो माता-पिता या संरक्षक है, 6 वर्ष से 14 वर्ष के मध्य आयु के अपने बच्चों या, यथास्थिति अपने पाल्य को शिक्षा का अवसर प्रदान करें। (यह कर्तव्य 86वां संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा जोड़ा गया है)




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