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गुप्तकालीन कला और स्थापत्य


गुप्तकालीन
कला और स्थापत्य


गुप्त काल में कला की विभिन्न विधाओं जैसे:- वास्तु, स्थापत्य, चित्रकला, मृदभांड-कला आदि में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिलती है। आगे हम विभिन्न उदाहरणों से इनको ही जानेंगे। 

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मंदिर:-

भारतीय स्थापत्य कला के सर्वोच्च उदाहरण तत्कालीन मंदिर थे। मंदिर निर्माण कला का जन्म यहीं से हुआ है।

इस समय के मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किए जाते थे। चबूतरों पर चढ़ने के लिए चारों ओर से सीढियाँ बनाई जाती थी। 

देवताओं की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया जाता और गर्भगृह के चारों ओर ऊपर से आच्छादित प्रदक्षिणा मार्ग का निर्माण किया गया जाता था। 

गुप्तकालीन मंदिरों में पार्श्वों (किनारों) पर गंगा, यमुना, शंख व पद्म की आकृतियां बना बनी होती थी। 

गुप्तकालीन मंदिरों की छत्रें प्रायः सपाट बनाई जाती थी पर शिखर युक्त मंदिरों के निर्माण के अवशेष मिले हैं।  

गुप्तकालीन मंदिर छोटी-छोटी ईंटों एवं पत्थरों से बनाए जाते थे। भीतरगांव का मंदिर ईटों से ही निर्मित है। 

गुप्तकालीन मंदिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। उस मंदिर में गुप्त स्थापत्य कला अपने पूर्ण विकसित रूप में दिखती है। 

देवगढ़ का
दशावतार मंदिर

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यह मंदिर सुंदर मूर्तियों से जड़ित हैं। इनमें झाँकती हुई आकृतियां, उड़ते हुए पशु-पक्षी, पवित्र वृक्ष, स्वास्तिक, फूल-पत्तियों की डिजाइन, प्रेमी युगल एवं बौनों की मूर्तियां निसंदेह मन को लुभाती हैं। 

इस मंदिर की विशेषता के रूप में इस में लगे 12 मीटर ऊंचे शिखर को शायद नजरअंदाज किया जा सके। 

संभवतः मंदिर निर्माण में शिखर का या पहला प्रयोग था। 

अन्य मंदिरों के एक मंडप की तुलना में दशावतार के इस मंदिर में 4 मंडलों का उपयोग हुआ है।



बौद्ध देव मंदिर:- 

यह मंदिर सांची तथा बोधगया में पाए जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त दो बौद्ध स्तूप में एक सारनाथ का धमेख स्तूप जो ईंटो द्वारा निर्मित है जिसकी ऊंचाई 128 फीट के लगभग है। 

धमेख स्तूप


दूसरा राजगृह का जरासंघ की बैठक काफी महत्व रखते हैं। 

जरासंघ की बैठक


 

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मूर्तिकला:- 

गुप्तकालीन कला का सर्वोत्तम पक्ष उसकी मूर्तिकला है। 

इनकी अधिकांश मूर्तियां हिंदू देवी-देवताओं से संबंधित हैं। गुप्त कला के मूर्तियों में कुषाण कालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णता लोप हो गया था। 

गुप्तकालीन मूर्तिकारों ने शारीरिक आकर्षण को छुपाने के लिए मूर्तियों में वस्त्रों के प्रयोग को आरंभ किया। 

गुप्तकालीन बुद्ध की मूर्तियों में सारनाथ की बैठे हुए बुद्ध की मूर्ति, मथुरा में खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति एवं सुल्तानगंज की कांसे की बुद्ध मूर्ति उल्लेखनीय है। इस मूर्तियों के में बुध की शांत चेतन मुद्रा को दिखाने का प्रयास किया गया है। 

सारनाथ


सुल्तानगंज


मथुरा


कूर्मवाहिनी यमुना तथा मकरवाहिनी गंगा की मूर्तियों का निर्माण किस काल में हुआ है। 

भगवान शिव के 1 मुखी एवं चतुर्मुखी शिवलिंग का निर्माण सर्वप्रथम गुप्त काल में ही हुआ। 

गुप्तकाल में शिव के अर्धनारीश्वर रूप की रचना भी हुई। 



विष्णु की प्रसिद्ध मूर्ति देवगढ़ के दशावतार मंदिर में स्थापित है। 


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वास्तुकला:- 

कानपुर के भीतरगांव, गाजीपुर के भीतरी और झांसी के देवरगढ़ के ईंटो से निर्मित मंदिर उल्लेखनीय हैं। 

भीतरगांव का मंदिर



मध्य प्रदेश के विदिशा स्थित उदयगिरी में पांचवी शताब्दी के प्रारंभ के गुप्त साम्राज्य की हिंदू कला को नाटकीय रूप में प्रदर्शन किया गया है। 

यहां भगवान विष्णु के वराह अवतार का स्मारक अर्थपूर्ण है जिसमें वह धरती मां को गहरे व प्रलयकारी जल से बचाते हैं। इसमें वराह भगवान की सूअर की आकृति, शक्ति व महिमा की एक समान भावना है। 


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चित्रकला:- 

गुप्त काल में चित्रकला उच्च शिखर पर पहुंच चुका था। 

कामसूत्र में 64 कलाओं के अंतर्गत चित्रकला की जानकारी भी संभ्रांतक व्यक्ति (नागरिक) के लिए आवश्यक बताई गई है। 

गुप्तकालीन क्षेत्रों में चित्रकला के उत्तम उदाहरण हमें महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित अजंता की गुफाओं तथा ग्वालियर के समीप स्थित बाग गुफाओं से प्राप्त होती हैं। 

अजंता की गुफाएं

अजंता के चित्र

अजंता के चित्र

अजंता की गुफाएं

अजंता की गुफाएं


अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही गुफा (1,2, 9,10,16, 17) शेष हैं। 

गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन है। अजंता के चित्रकरी तकनीकी दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। 

इन गुफाओं के अनेक प्रकार के फूल पत्तियों वृक्षों एवं पशु आकृतियों से सजावट का काम तथा बुध एवं बोधिसत्व की प्रतिमाओं के चित्रण का काम जातक ग्रंथों से ली गई कहानियों का वर्णात्मक दृश्य के रूप में प्रयोग हुआ है। 

यह चित्र अधिकतर जातक कथाओं की है अजंता की चित्रकला की एक विशेषता यह भी है कि इन चित्रों में दृश्यों को अलग-अलग विन्यास से नहीं विभाजित किया गया है। 

चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भलीभांति रगड़ कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था।  

अजंता की गुफा संख्या 16 में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र प्रशंसा करते हुए ग्रिफिथ वर्ग एवं फर्गुसन ने कहा करुणा भाव एवं अपनी कथा को स्पष्ट ढंग से कहने की दृष्टि से यह चित्रकला के इतिहास में अनतिक्रमणीय है।  

वाकाटक वंश के शासक वराह मंत्री ने गुफा संख्या 16 को बौद्ध संघ को दान में दिया था। 

गुफा संख्या 17 के चित्र को चित्रशाला कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामंत ने करवाया था। 

इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म जीवन महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित रहे हैं.

 इस गुफा में बुद्ध के महापरिनिर्वाण की भव्य प्रतिमा चित्र जिसमें ऊपर की ओर अनेक देवी संगीतज्ञ तथा नीचे की ओर उनके दुखी अनुयाई का चित्र है। 

अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित थे


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बाघ की चित्रकला:- 

ग्वालियर के समीप बाघ नामक स्थान पर स्थित विंध्य पर्वत को काटकर बाघ की गुफाएं बनाई गई हैं 1818 ई. में डेंजरफील्ड ने इस गुफाओं को खोजा। बाघ गुफा के चित्रों का विषय मनुष्य के लौकिक जीवन से संबंधित हैं। यहां से प्राप्त संगीत एवं नृत्य के चित्र सर्वाधिक आकर्षक हैं। 

बाघ की गुफा 



साहित्य:- 

गुप्तकाल को संस्कृत साहित्य का स्वर्ण काल माना जाता है। 

बार्नेट के अनुसार प्राचीन भारत में के इतिहास में गुप्त काल का वह महत्व है जो यूनान के इतिहास में पेरिक्लियन लोगों का। 

स्मिथ ने गुप्त काल की तुलना ब्रिटिश इतिहास के एलिजाबेथ तथा स्टुअर्ट के कालों से की है। 

गुप्त काल को श्रेष्ठ कवियों का काल माना जाता है। इस काल में कवि दो भागों में बांटे गए हैं :-

1) प्रथम भाग में वे कभी आते हैं जिन के विषय में हमें अभिलेखों से जानकारी मिलती है हालांकि इनकी किसी कृति के विषय में हमें जानकारी नहीं है। जैसे :- हरिषेण, शाव (वीरसेन), वत्सभट्टि एवं वासुल आते हैं। 


2) दूसरे भाग में वे कवि आते हैं जिनकी रचनाओं के बारे में हमें ज्ञान हैं जैसे:- कालिदास, भारवि, भट्टि, मातृगुप्त, भर्तृश्रेष्ठ, विष्णु शर्मा आदि। 


हरिषेण :- समुद्रगुप्त के लिए प्रयाग स्तंभ लेख की रचना की। लेख की शैली :- चंपू शैली (गद्यपद्य-मिश्रित) 


शाव (वीरसेन):- शाव की काव्य शैली के विषय में जानकारी का एकमात्र स्त्रोत उदयगिरी गुफा की दीवाल पर उत्कीर्ण लेख है। लेख के आधार पर यह माना जाता है कि शाव व्याकरण, न्याय एवं राजनीति का ज्ञाता एवं पाटलिपुत्र का निवासी था। 


वत्स भट्टी:- इनकी काव्य शैली के विषय में जानकारी मालव संवत के मंदसौर के स्तंभ लेख से मिलती है। 

इस लेख में कुल 44 श्लोक हैं, जिनमें पहले के तीन लोगों में सूर्य स्तुति की गई है। 


वासुल:- मंदसौर प्रशस्ति की रचना यशोवर्धन के समय में की। कुल 9 श्लोकों का यह काव्य श्रेष्ठ काव्य का अनोखा उदाहरण है। 


कालिदास:- कालिदास संस्कृत साहित्य के इस महान कवि की महत्वपूर्ण कृतियां हैं:- 

ऋतुसंहार, मेघदूतम, कुमारसंभवम् एवं रघुनाथ महाकाव्य। 

कालिदास की सर्वश्रेष्ठ कृति उनकी रचना नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् है। 

इनके अतिरिक्त उन्होंने मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोरवासियम नाटक की भी रचना की। 

भारवि:- इनके द्वारा रचित महाकाव्य किरातार्जुनीयम् महाभारत के पर्व पर आधारित है। इसमें कुल 18 सर्ग हैं। 


भट्टि:- इनके द्वारा रचित भक्ति काव्य को रावण वध भी कहा जाता है। रामायण की कथा पर आधारित इस काव्य में कुल 22 वर्ग एवं 1624 श्लोक हैं। 


मातृगुप्त:- इसके विषय में जानकारी कल्हण की राजतरंगिणी से मिलती है। इसने भरत के नाट्यशास्त्र पर टिका लिखी थी। 


विष्णु शर्मा:- इनके द्वारा रचित काव्य पंचतंत्र में विश्व की लगभग 50 भाषाओं में 250 भिन्न-भिन्न संस्करण निकल चुके हैं। पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ बाइबिल के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है। सोलवीं सदी के अंत तक इस ग्रंथ का अनुवाद यूनानी, स्पेनिश, जर्मन एवं अंग्रेजी भाषा में किया जा चुका था। 

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