Ticker

6/recent/ticker-posts

कुमारगुप्त महेंद्रादित्य


कुमारगुप्त महेंद्रादित्य (415 454 ई)

चंद्रगुप्त द्वितीय के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त गद्दी पर बैठा। इसकी उपाधि महाराजाधिराज, परमभट्ठारक, परमदैवत, तथा महेंद्रादित्य थी। 

गुप्त शासकों में कुमारगुप्त के सर्वाधिक 18 अभिलेख प्राप्त हुए जिसमें 13 शिलालेख तथा 5 ताम्रफलक हैं। 



कुमारगुप्त ने के शासन काल के विषय में जानकारी:-

कुमारगुप्त ने के शासन काल के बारे में भिलसढ़ का स्तंभ अभिलेख, गढ़वालेख, करमण्डालेख, दामोदर के ताम्रपत्र तथा सांची के लेख से जानकारी प्राप्त किया जा सकता है। 

भिलसढ़ अभिलेख:- कुमारगुप्त प्रथम तथा गुप्त वंश की वंशावली प्राप्त होती है। यह कुमारगुप्त की शासनकाल का पहला अभिलेख है। 


मंदसौर अभिलेख:- यह अभिलेख एक प्रशस्ति के रूप में हैं। इसकी रचना वत्सभट्टी ने की थी। इसमें कुमारगुप्त के राज्यपाल बंधुवर्मा द्वारा सूर्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। 


करमण्डा अभिलेख:- इसमें कुमारगुप्त प्रथम के कुमारामात्य पृथ्वीषेन द्वारा अयोध्या के ब्राह्मणों को दान दिए जाने का उल्लेख है। 


उदयगिरि गुफा अभिलेख:- इसमें किसी शंकर नाम के व्यक्ति द्वारा पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित किए जाने का उल्लेख है। 


मालव संवत 413(436 ई.):- इस अभिलेख में रेशम बुनकरों की श्रेणी पट्टवाय द्वारा दशपुर (मंदसौर) में एक विशाल सूर्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। 


मथुरा का भग्न प्रतिमा लेख:- यह लेख में कुमारगुप्त को विजय राज संवत्सर कहा गया है। 


बंगाल से कुमारगुप्तकालीन प्राप्त हुए हैं ताम्रपत्र 1) धनदेह ताम्रपत्र, 2) दामोदर ताम्रपत्र, 3) वैग्राम ताम्रपत्र। 

धनदेह ताम्रपत्र में कुमारगुप्त प्रथम को परमभट्टारक, महाराजाधिराज तथा परमदैवत कहा गया है। 

दामोदर ताम्रपत्र में गोविंद स्वामी के द्वारा मंदिर के निर्वाह के लिए भूमि दान जाने का उल्लेख मिलता है। 

इसने मयूर शैली की मुद्राएं जारी करवाई थी।

अश्वमेघ यज्ञ कराया और अश्वमेघ महेंद्र की उपाधि धारण की। 



मुद्राओं के प्रकार:- 

मयूर शैली, खड्गधारी प्रकार, गजारोही प्रकार, सिंह निहन्ता प्रकार, गौड़निहन्ता प्रकार, कार्तिकेय प्रकार। 

व्हेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम शक्रादित्य बताया है। 

कुमारगुप्त महेंद्रादित्य को अपने शासन के अंतिम समय में पुष्यमित्र जातियों के विद्रोह का सामना करना पड़ा।  इसकी जानकारी स्कंदगुप्त के भीतरी स्तंभ लेख से मिलती है। यहीं से गुप्त साम्राज्य विघटन की ओर अग्रसर हुआ। 

कुमारगुप्त ने ही नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापना की थी। 


धर्म :-

कुमारगुप्त वैष्णव धर्म का अनुयाई था। गढ़वा लेख में उससे परम भागवत कहा गया है। 

पुत्र का नाम स्कंद रखा। 

कार्तिकेय प्रकार के स्वर्ण मुद्राएं चलाएं तथा मध्य देशीय रजत मुद्राओं पर गरुड़ के स्थान पर मयूर का अंकन करवाया जो उसके कार्तिकेय के उपासक होने का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। 

अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था। उसका राज्यपाल पृथ्वीसेन शैव था, जिसका उल्लेख करमदण्डा लेख में मिलता है। 

पश्चिमी मालवा में राज्यपाल बुधवर्मा ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। 





Post a Comment

0 Comments

Total Pageviews