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राष्ट्रपति

* भारत का राष्ट्रपति *


  • भारतीय संविधान पर ब्रिटेन के संविधान का व्यापक प्रभाव है। 
  • ब्रिटैन के सविधान का अनुकरण करते हुए भारत में सविधान द्वारा "संसदीय-शासन" की स्थापना की गई है। 
  • जिस तरह ब्रिटेन में शासन की प्रमुख वह की रानी होती है, उसी प्रकार भारत में राष्ट्र का प्रमुख "राष्ट्रपति" होते हैं। 
  • भारत और ब्रिटेन के राष्ट्र प्रमुखों में अंतर केवल इतना है कि :
  • ब्रिटेन के राष्ट्र प्रमुख (रानी) का पद वंशानुगत है, जबकि 
  • भारत में राष्ट्र प्रमुख का निर्वाचन होता है। 


चूँकि भारत में राष्ट्रपति निर्वाचन द्वारा चुने जाते है, इसी विशेषता के कारण भारत एक गणतंत्र राष्ट्र है। 

भारत एक गणतंत्र राष्ट्र क्यों है    ------ क्योंकि भारत में राष्ट्रपति निर्वाचन द्वारा चुने जाते है। 

Rastrapati-Bhavan
Rastrapati-Bhavan

राष्ट्रपति:-

  • राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रमुख होता है, जो एक निर्वाचक-मंडल द्वारा निर्वाचित किया जाता है। 
  • भारत में सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से ही किये जाते है। 
  • राष्ट्रपति के विषय में संविधान के अनुच्छेद 52-62 और अनुच्छेद 71-73 में उपबंध किया गया है। 


नीचे हम उन्ही अनुच्छेदों को विस्तार में पढ़ेंगे :-

अनुच्छेद 52:- भारत का राष्ट्रपति। 

अनुच्छेद 53:- संघ की कार्यपालिका की शक्ति।

अनुच्छेद 54:- राष्ट्रपति का निर्वाचन।

अनुच्छेद 55:- राष्ट्रपति का निर्वाचन की रीति या पद्धति।

अनुच्छेद 56:- राष्ट्रपति के पदावधी।

अनुच्छेद 57:- पुर्ननिर्वाचन के लिए योग्यता।

अनुच्छेद 58:- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं।

अनुच्छेद 59:- राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें।

अनुच्छेद 60:- राष्ट्रपति द्वारा शपथ।

अनुच्छेद 61:- राष्ट्रपति पर महाभियोग।

अनुच्छेद 62:- राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय। 

अनुच्छेद 71:- राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय।

अनुच्छेद 72:- क्षमा आदि की कुछ मामलों में दण्डादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्तियां।

अनुच्छेद 73:- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार।

अनुच्छेद 123:- अध्यादेश जारी करने की शक्ति।

अनुच्छेद 124:- न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति।

अनुच्छेद 143:- उच्चतम न्यायालय से परामर्श की राष्ट्रपति की शक्ति। 





अनुच्छेद 52:- भारत का राष्ट्रपति। 


अनुच्छेद 53:- संघ की कार्यपालिका की शक्ति। 

  • संघ की कार्यपालिका की शक्तियां राष्ट्रपति में निहित है और वह अपनी इस शक्ति का प्रयोग अपने अधीनस्थ प्राधिकारियों (अर्थात -केंद्रीय मंत्रिमंडल) के द्वारा करता है।



अनुच्छेद 54:- राष्ट्रपति का निर्वाचन। 

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाएगा जिसमें संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा) तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होंगे। 
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में संसद के मनोनीत सदस्य। राज्य विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषद के सदस्य (निर्वाचित एवं मनोनीत) शामिल नहीं किए जाते। 
  • 70वें संविधान संशोधन से यह व्यवस्था कर दी गई है कि दो संघ-राज्य क्षेत्र (पांडिचेरी तथा दिल्ली) की विधानसभाओं के सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल किए जाएंगे। 



अनुच्छेद 55:- राष्ट्रपति का निर्वाचन की रीति या पद्धति। 

राष्ट्रपति के निर्वाचन में 2 सिद्धांतों को अपनाया जाता है :-

1) समरूपता तथा समतुल्य ता का सिद्धांत:- 

  • इस सिद्धांत के अनुसार राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता तथा सभी राज्यों और संघ के प्रतिनिधित्व में समतुल्यता होगी। 
  • इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व का मान निकालने के लिए एक ही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। 
  • तथा सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य का योग संसद के सभी सदस्यों के मत मूल्य के युग के समान होगा। 


राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य
तथा संसद के सदस्यों के मत मूल्य -- को निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है। 

** विधानसभा के सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण :- 

  • प्रत्येक राज्य की विधानसभा की सदस्य के मतों की संख्या निकालने के लिए उस राज्य की कुल जनसंख्या (जो पिछले जनगणना के अनुसार निर्धारित है) को राज्य विधानसभा की कुल निर्वाचित सदस्य संख्या से विभाजित करके भागफल की 1000 से विभाजित किया जाता है इस प्रकार भाजनफल को एक सदस्य का मत मूल्य मान लेते हैं। 

यदि उक्त विभाजन के परिणाम स्वरुप शेष संख्या 500 से अधिक आए तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है। 

राज्य विधानसभा में सदस्यों का मत मूल्य में प्रकार निकाला जाता है:-

Vidhansabha-Sadasyo-ka-Mat-Mulya
Vidhansabha-Sadasyo-ka-Mat-Mulya



संसद सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण:- 

  • संसद सदस्य का मत मूल्य निर्धारण करने के लिए राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य को जोड़कर संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के योग का भाग दिया जाता है। 

संसद सदस्य का मत मूल्य निम्न प्रकार से निकाला जाता है:-

sansad-sadasyo-ka-mat-mulya
sansad-sadasyo-ka-mat-mulya


इस प्रकार राष्ट्रपति के चुनाव में या ध्यान रखा जाता है कि सभी राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग बराबर रहे और सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य का निर्धारण करने के लिए एक सामान्य प्रक्रिया अपनाई जाए इसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत भी कहते हैं


2) एकल संक्रमणीय सिद्धांत:- 

  • इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि यदि निर्वाचन में से एक से अधिक उम्मीदवार हो तो मतदाताओं द्वारा मतदान वरीयता क्रम से दिया जाए। 
  • इसका आशय है यह है कि मतदाता मतदान पत्र में उम्मीदवारों के नाम या चुनाव चिह्न में समक्ष अपना वरीयता क्रम लिखेगा। 


प्रश्नकाल और शून्यकाल क्या है ?


अनुच्छेद 56:- राष्ट्रपति के पदावधी। 

  • राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष की अवधि तक अपने पद पर बना रहता है। 
  • लेकिन इस 5 वर्ष की अवधि के पूर्व भी वह उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है या 
  • उसे 5 वर्ष की अवधि के पूर्व संविधान के उल्लंघन के लिए संसद द्वारा बनाए गए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। 
  • राष्ट्रपति द्वारा उप राष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र के सूचना उप राष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा के अध्यक्ष को अविलंब दी जाती है। 
  • राष्ट्रपति अपने 5 वर्ष के कार्यकाल के पूरा करने के बाद भी अब तक राष्ट्रपति के पद पर बना रहता है जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है। 




अनुच्छेद 57:- पुर्ननिर्वाचन के लिए योग्यता। 

  • भारत के राष्ट्रपति पद पर पदस्थ व्यक्ति दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनाव में उम्मीदवार बन सकता है।  
  • पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति के पद पर रहे थे। 



अनुच्छेद 58:- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं। 

  • इस अनुच्छेद अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति होने के योग्य तब होगा जब वह:- 
  • भारत का नागरिक हो,
  • 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो, 
  • लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने की योग्य हो, तथा 
  • भारत सरकार के या किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा इन दोनों सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य पदाधिकारी के अधीन लाभ का पद धारण ना करता हो। 


यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के पद पर या संघ अथवा किसी राज्य के मंत्री परिषद का सदस्य है, तो यह नहीं माना जाएगा कि वह लाभ के पद पर है। 




अनुच्छेद 59:- राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें। 

  • राष्ट्रपति की परिलब्धियां और उनके भत्ते उनके कार्यकाल में घटाएं नहीं जा सकते। 
  • राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते को आयकर से छूट प्राप्त है। 
  • राष्ट्रपति को निशुल्क शासकीय निवास उपलब्ध होता है। 
  • वह ऐसी परिलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होता है जो संसद विधि द्वारा अवधारित करें। 
  • राष्ट्रपति का वेतन ₹5लाख महीना होता है। 
  • राष्ट्रपति को पदावधि समाप्ति या पद त्याग देने के पश्चात उनके वेतन का 50% का पेंशन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। 





अनुच्छेद 60:- राष्ट्रपति द्वारा शपथ। 

  • राष्ट्रपति को शपथ दिलाता है ----- भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय में उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश  
  • राष्ट्रपति के शपथ का प्रारूप अनुसूची-2 में दिया गया है। 
  • राष्ट्रपति संविधान और विधि के परिरक्षण संरक्षण और प्रतिरक्षण का शपथ लेता है


राज्यसभा क्या होता है ?

राज्यसभा के पदाधिकारी 

अनुच्छेद 61:- राष्ट्रपति पर महाभियोग। 

  • राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया चलाई जाती है। 
  • राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया तर संचालित की जा सकती है जब उसने संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया हो। 
  • राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग चलाने का संकल्प संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।  
  • लेकिन जिस सदन में महाभियोग का संकल्प पेश किया जाना हो उसके एक चौथाई (1/4) सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित आरोप पत्र राष्ट्रपति को 14 दिन के पूर्व दिया जाना चाहिए। 
  • राष्ट्रपति को आरोप पत्र दिए जाने के 14 दिन के बाद ही सदन में महाभियोग का संकल्प पेश किया जाए आ सकता है। 
  • जिस सदन में संकल्प पेश किया जाए उसके सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई (2/3) बहुमत द्वारा संकल्प पारित किया जाना चाहिए। 
  • जिस सदन में संकल्प पेश किया गया है उसके द्वारा पारित किए जाने के बाद संकल्प दूसरे सदन में भेजा जाएगा। 
  • दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाए आरोपों की जांच करेगा। 
  • जब दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों की जांच कर रहा हूं तब राष्ट्रपति या तो स्वयं या तो अपने वकील के माध्यम से लगाए गए आरोपों के संबंध में अपना पक्ष प्रस्तुत करेगा और स्पष्टीकरण देगा। 
  • यदि दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाए आरोपों को सही पाता है और अपनी संख्या के बहुमत से तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई (2/3) बहुमत से पहले सदन द्वारा पारित संकल्प का अनुमोदन कर देता है तो महाभियोग की कार्यवाही पूर्ण हो जाती है। 
  • इस प्रकार राष्ट्रपति अपना पद त्यागने के लिए बाध्य हो जाता है। 




अनुच्छेद 62:- राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रखती को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि। 

  • इस उपबंध में केवल यह अपेक्षा की गई है कि राष्ट्रपति का चुनाव निर्धारित समय के अंदर संपन्न करा लिया जाना चाहिए निर्वाचन की प्रक्रिया को 5 वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद तक स्थगित नहीं रखा जा सकता। 



अनुच्छेद 71:- राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्त विषय। 

  • राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद का विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा। 
  • यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होकर पद ग्रहण कर लेता है और बाद में उसका चुनाव उच्चतम न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जाता है तो राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उसके द्वारा किया गया कार्य की गई घोषणा अविधिमान्य नहीं होगा। 


प्राक्कलन और लोकलेखा समिति 

संसद की अस्थाई और तदर्थ समिति 


अनुच्छेद 72:- क्षमा आदि की कुछ मामलों में दण्डादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्तियां। 

  • राष्ट्रपति को क्षमा तथा कुछ मामलों में दण्डादेश के निलंबन परिहार यह लघु करण की शक्ति प्रदान की गई है। 
  • राष्ट्रपति को निम्नलिखित मामले में क्षमा तथा दोष सिद्धि के निलंबन परिहार या लघु करण की शक्ति प्राप्त है 
  • सेना न्यायालयों द्वारा दिए गए दण्ड के मामले में 
  • मृत्युदण्ड आदेश के सभी मामलों में 
  • उन सभी मामलों में जिसमें दण्ड या दण्डादेश ऐसे विषय संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है, जिस विषय पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है। 


क्षमा का तात्पर्य:- अपराध के दंड से मुक्ति प्रदान करना है। 

प्रतिलंबन का तात्पर्य:- विधि द्वारा विहित दण्ड के स्थाई स्थगन से है। 

परिहार का तात्पर्य:-  दण्ड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना दण्ड की मात्रा को कम किया जाना है। 

लघुकरण का तात्पर्य:- दण्ड की प्रकृति में परिवर्तन करना। 


  • राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। 
  • यदि राष्ट्रपति द्वारा इस शक्ति का प्रयोग किया जाता है तो उसका न्यायिक पुनर्विलोकन न्यायालय न्यायालय द्वारा किया जा सकता है। 



अनुच्छेद 73:- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार। 




अनुच्छेद 123:- अध्यादेश जारी करने की शक्ति। 

  • राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। 
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश का वही प्रभाव होता है जो संसद द्वारा पारित तथा राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित अधिनियम का होता है। 
  • लेकिन अंतर यह है कि अधिनियम का प्रभाव तब तक स्थाई होता है जब तक संसद द्वारा या राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा निरस्त ना कर दिया जाए। 
  • इसके विपरित अध्यादेश केवल 6 मास तक प्रवर्तन में रहता है। 
  • यदि 6 मास के अंदर संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करने के बाद अधिनियम हो जाता है। 
  • राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश संसद के विश्रांतिकाल में उस समय जारी किया जाता है जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके अनुसार अविलंब कार्यवाही करना आवश्यक है। 




अनुच्छेद 124:-  न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति। 

  • राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति है।  



अनुच्छेद 143:- उच्चतम न्यायालय से परामर्श की राष्ट्रपति की शक्ति। 

  • जब राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो की विधि या तथ्य का ऐसा कोई प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है जो व्यापक महत्व का है उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना आवश्यक हैं, तब वह उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है। 




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