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संसद की अस्थायी या तदर्थ समिति

* तदर्थ समिति * 

संसद की तदर्थ समिति सदन द्वारा या अध्यक्ष/सभापति द्वारा किन्हीं विशिष्ट मामलों पर विचार करने तथा प्रतिवेदन (रिपोर्ट) प्रस्तुत करने के लिए गठित की जाती है। 

यह अस्थायी प्रकार की समिति होती है तथा अपना कार्य पूरा करते ही समाप्त हो जाती है। 



तदर्थ समितियों को 2 वर्गों में बांटा जा सकता है :-

1) प्रवर संयुक्त/संयुक्त प्रवर समिति :-

A) प्रवर समिति:-

विधेयकों की समीक्षा करने के लिए जब लोकसभा या राज्यसभा द्वारा अलग-अलग समितियों का गठन किया जाता है तो इस प्रकार गठित समिति को प्रवर समिति कहा जाता है। 

दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग गठित की जाने वाली समिति में संबंधित सदन के 30-30 सदस्य शामिल किए जाते हैं। 


B) संयुक्त प्रवर समिति:-

जब विधेयकों की समीक्षा के लिए दोनों सदनों द्वारा संयुक्त रुप से समिति का गठन किया जाता है, तो प्रवर समिति संयुक्त प्रवर समिति कहलाता है। 

संयुक्त प्रवर समिति में 45 सदस्य होते हैं, जिसमें से 30 सदस्य लोकसभा के और 15 सदस्य राज्यसभा के होते हैं। 



2) किसी विशिष्ट मामले की जांच करने तथा प्रतिवेदन देने के लिए समिति:- 

अध्यक्ष या सभापति द्वारा किसी विशिष्ट मामले की जांच करने तथा उस पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) देने के लिए अलग से समिति का गठन किया जा सकता है। 

इस प्रकार की समिति संयुक्त भी हो सकती है। 

जब संयुक्त संसदीय समिति का गठन होता है तब उसमें 45 सदस्य होते हैं 30 लोकसभा के तथा 15 राज्य सभा के। 

अलग समिति के गठन पर इसमें संबंधित सदस्य सदन के 30 सदस्य होते हैं। 



सर्वप्रथम गठित समिति :- 

इस प्रकार की समिति का गठन सर्वप्रथम 1951 में मुगदल के आचरण की जांच करने के लिए गठित की गई थी। 

इस प्रकार गठित अन्य समिति में से कुछ है रेलवे अभिसमय समिति, लाभ के पदों संबंधित संयुक्त संसदीय समिति, बोफोर्स मामले पर संयुक्त संसदीय समिति तथा प्रतिभूति घोटाला जाँच संयुक्त संसदीय समिति





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