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राष्ट्रपति का निर्वाचन की प्रक्रिया

 

-: राष्ट्रपति का निर्वाचन की रीति या पद्धति :-


राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाएगा जिसमें संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा) तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होंगे। 

राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में संसद के मनोनीत सदस्य। राज्य विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य तथा राज्य विधान परिषद के सदस्य (निर्वाचित एवं मनोनीत) शामिल नहीं किए जाते। 

70वें संविधान संशोधन से यह व्यवस्था कर दी गई है कि दो संघ-राज्य क्षेत्र (पांडिचेरी तथा दिल्ली) की विधानसभाओं के सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल किए जाएंगे।


राष्ट्रपति का निर्वचन कैसे होता है, इसके विषय में संविधान के अनुछेद-55 में उपबंध दिया गया है। 



अनुच्छेद 55:- राष्ट्रपति का निर्वाचन की रीति या पद्धति। 

राष्ट्रपति के निर्वाचन में 2 सिद्धांतों को अपनाया जाता है :-


1) समरूपता तथा समतुल्य ता का सिद्धांत:- 

इस सिद्धांत के अनुसार राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता तथा सभी राज्यों और संघ के प्रतिनिधित्व में समतुल्यता होगी। 

इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व का मान निकालने के लिए एक ही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। 

तथा सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य का योग संसद के सभी सदस्यों के मत मूल्य के युग के समान होगा। 

राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य तथा संसद के सदस्यों के मत मूल्य -- को निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है। 

विधानसभा के सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण :- 

प्रत्येक राज्य की विधानसभा की सदस्य के मतों की संख्या निकालने के लिए उस राज्य की कुल जनसंख्या (जो पिछले जनगणना के अनुसार निर्धारित है) को राज्य विधानसभा की कुल निर्वाचित सदस्य संख्या से विभाजित करके भागफल की 1000 से विभाजित किया जाता है इस प्रकार भाजनफल को एक सदस्य का मत मूल्य मान लेते हैं। 

यदि उक्त विभाजन के परिणाम स्वरुप शेष संख्या 500 से अधिक आए तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है। 

राज्य विधानसभा में सदस्यों का मत मूल्य में प्रकार निकाला जाता है:-

Vidhansabha-Sadasyo-ka-Mat-Mulya
Vidhansabha-Sadasyo-ka-Mat-Mulya




संसद सदस्य के मत मूल्य का निर्धारण:- 

संसद सदस्य का मत मूल्य निर्धारण करने के लिए राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मत मूल्य को जोड़कर संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों के योग का भाग दिया जाता है। 

संसद सदस्य का मत मूल्य निम्न प्रकार से निकाला जाता है:-

sansad-sadasyo-ka-mat-mulya
sansad-sadasyo-ka-mat-mulya

इस प्रकार राष्ट्रपति के चुनाव में या ध्यान रखा जाता है कि सभी राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग संसद के निर्वाचित सदस्यों के मतों के मूल्य का योग बराबर रहे और सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के मत मूल्य का निर्धारण करने के लिए एक सामान्य प्रक्रिया अपनाई जाए इसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत भी कहते हैं


2) एकल संक्रमणीय सिद्धांत:- 

इस सिद्धांत का तात्पर्य है कि यदि निर्वाचन में से एक से अधिक उम्मीदवार हो तो मतदाताओं द्वारा मतदान वरीयता क्रम से दिया जाए। 

इसका आशय है यह है कि मतदाता मतदान पत्र में उम्मीदवारों के नाम या चुनाव चिह्न में समक्ष अपना वरीयता क्रम लिखेगा। 




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