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एक सच्चाई, जो बताई नहीं जाती

 

एक सच्चाई, जो बताई नहीं जाती



अकबर प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज़ का मेला आयोजित करवाता था....!


इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था....!


अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती....उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी....!


एक दिन नौरोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई....!


जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था....!

जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ था!


बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया....और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया....!


जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की....


किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी....!

और कहा नींच....नराधम, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ....

जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है....!


बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है....?


अकबर का ख़ून सूख गया....!


कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा....!


अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई....मुझे माफ़ कर दो देवी....!


इस पर किरण देवी ने कहा: आज के बाद दिल्ली में नौरोज़ का मेला नहीं लगेगा....!


और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा....!


अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा....!


उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा....!


इस घटना का वर्णन 

गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।


बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है!


 किरण सिंहणी सी चढ़ी

उर पर खींच कटार..!

भीख मांगता प्राण की

अकबर हाथ पसार....!!


अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।


इस तरह की‌ पोस्ट को शेअर जरूर करें और अपने महान धर्म की गौरवशाली वीरांगनाओं की कहानी को हर एक भारतीय को  जरूर सुनायें, जिससे वो हमारे गौरवशाली भारत के महान सपूत और वीरांगना को जान सकें, और उन पर अभिमान कर सके !

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