* चेर राजवंश *
Cher-Rajvansh |
- ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लेखित चेरपादः संभवतः चेरों के विषय में प्रथम जानकारी है।
- इसके अतिरिक्त रामायण, महाभारत, अशोक के शिलालेख, कालिदास के रघुवंश महाकाव्य एवं संगम साहित्य से चेरों के बारे में भी जानकारी मिलती है।
- चेर राज्य आधुनिक कोंकड़, मालाबार का तटीय क्षेत्र तथा उत्तरी कोचीन तक विस्तृत था।
- अशोक के शिलालेखों में "केरलपुत्र" के नाम से चर्चित चेर राज्य को कुडावर, बिल्लवर, कट्टवर, पुरैयार आदि नामों से भी जाना जाता था
- चोरों का राजकीय चिन्ह धनुष था।
- चेर राजवंश की राजधानी ---------------- किज़न्थुर-कन्डल्लुर और करूर वांची (कांची) थी
- चेर वंश का प्रथम शासक और संस्थापक उदियन जेरल (उदयिन जेरल) को माना जाता है
प्रमुख शासक:-
1) उदियनजेरल (लगभग 130ई.)- उदियनजेरल चेर वंश का प्रथम शासक और संस्थापक था।
- संगम कालीन तमिल कवि "परनार" के समकालीन इसे "पेरुनजोरम उदयन" तथा "बाराभवन" के नाम से भी जाना जाता है।
- इसने महाभारत के युद्ध में भाग लेने वाले वीरों को भोजन कराया था, इसी कारण उसे महाभोजक उदियनजेरल की उपाधि मिली।
- इसने एक बड़ी पाकशाला बनवाया था जहां से वह जनता में उन्मुक्त रूप से भोजन वितरित करता था।
2) नेदुनजेरल आदन :- उदियनजेरल के पुत्र आदन ने अपने पड़ोसी शत्रु राज्य पर आक्रमण कर वहां से कुछ यवन व्यापारियों को बंदी बना लिया, जिन्हें कालांतर में काफी धन लेने के बाद मुक्त किया।
- संभवतः आदन ने उस समय के 7 छत्रधारी राजाओं पर विजय प्राप्त की थी।
- इसके अतिरिक्त उसने चोल नरेश "उरुवप्पघरेर इलैयन" के विरुद्ध भी अभियान का नेतृत्व किया था पर युद्ध के अंतिम चरण में दोनों की हत्या कर दी गई और दोनों की रानियां सती हो गई।
- आदन अपने 55 वर्ष के शासनकाल में अधिराज एवं श्रमयवरम्बन बने की उपाधि धारण की।
3) पलयानैशेल्केलु कुट्टवन :- आदन की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई कुट्टवन उत्तराधिकारी बना।
- संगम साहित्य की जानकारी के अनुसार उसने अग्गप्पा, दुर्ग एवं कोंगु प्रदेश को विजित किया था।
- उसकी सेना में हाथियों की संख्या सर्वाधिक थी। उसने अधिराज की उपाधि धारण की।
4) शेनगुट्टवन अथवा धर्मपरायण कुट्टवन :- चेर वंश के इस महानतम शासक को "लालचेर" भी कहा जाता था।
- इसकी प्रशंसा संगमकालीन कवियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि 'परणर' ने की।
- चेरकालीन इतिहास में इसे महान योद्धा एवं कला साहित्य के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
- उसने अपनी मजबूत नौसेना द्वारा मोहुर प्रदेश पर विजय प्राप्त की।
- शेनगुट्टवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी दक्षिण प्रायद्वीप में सर्वप्रथम "पत्तिनि" या "कण्णगी" पूजा की प्रथा को प्रारंभ करना।
- इस पूजा के अंतर्गत एक आदर्श तथा पति धर्म की प्रतीक पत्नी की देवी के रूप में मूर्ति बनाकर पूजा की जाती थी।
- शेनगुट्टवन ने सती कण्णगी की याद में एक विशाल मंदिर एवं उसकी प्रतिमा का निर्माण करवाया।
- उसने अधिराज की उपाधि को धारण किया।
5) पेरुनजेरल इरमपोरई (लगभग 190 ई.) :- आदन के पुत्र इरमपोरई ने सामंतों की राजधानी तडगूर (धर्मपुर) पर आक्रमण कर जीत लिया।
- उसने विद्वान, अनेक यज्ञ को संपन्न कराने वाला एवं अनेक वीर पुत्रों का पिता होने का गौरव प्राप्त किया था।
- इसने अमरयवरम्वन की उपाधि ग्रहण की इसका अर्थ होता है हिमालय तक सीमा वाला।
- अर्थात उसने समस्त भारत पर विजय प्राप्त की तथा हिमालय पर चेर राज्य का चिन्ह अंकित किया।
- इसकी राजधानी मरुंदई थी।
- इरमपोरई का विरोधी तडगूर के राजा अदिगयमान अथवा नडुमान का महत्वपूर्ण कार्य था -दक्षिणी भूभाग में सर्वप्रथम गन्ने की खेती को आरंभ करवाना
- इरमपोरई के विषय में कहा जाता है कि इसने पाण्ड्य तथा चोल शासकों से युद्ध किया और बहुत सा धन अपनी राजधानी वांजि(कुरुवुर) लाया।
- संगम कालीन कवियों ने इरमपोरई को अंतिम चेर शासक माना है।
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