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भारत में जल संकट Bhart Me Jal Sankat Par Nibandh 150 Shabdo me

भारत में जल संकट

 

रामचरित्र मानस में कविवर तुलसीदास जी ने कहा है कि--

 

"क्षितिजलपावक, गगन, समीरा।

पंच रचित अति अधम शरीरा।।"

अर्थात हमारा शरीर पंच तत्त्व यथा - क्षिति (पृथ्वी), जल ,पावक(अग्नि),गगन और समीर(वायु) इन पंच तत्वों से बना है। इन पंचतत्व में से जल सबसे महत्वपूर्ण है। यह जल ही है जो जीवन की उत्पत्ति का स्रोत है। वैज्ञानिक शोधों से भी यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि जीवन की उत्पत्ति जल से ही हुई है। विश्व की सभी संस्कृतियों और सभ्यताओं का विकास भी प्रमुख नदियों के किनारे ही हुआ था। जल का कोई अन्य विकल्प नहीं है। यजुर्वेद के 15वे तथा 36वे श्लोकों में ऋषिगण ने जल से प्रार्थना करते हुए कहा है किजैसे मां अपनी संतान को दूध पिलाती है वैसे ही जल है और यह जल हम लोगों के लिए कल्याणतम रस है। वास्तव में जीवन और प्रकृति का संपूर्ण सौंदर्य जल पर ही निर्भर करता है। 

            इसे प्रकृति की विडंबना ही कहेंगे कि धरती पर 70‌% पानी होने के बावजूद इंसान दिनों-दिन प्यासा होता जा रहा है। एक तथ्य यह भी है कि इंसान के उपयोग तुल्य पानी कुल पानी का 2% ही है। मनुष्य की लापरवाही के चलते आज केवल भारत ही नहीं वरन विश्व के कई देश पानी की कमी की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। पानी की कमी इस प्रकार भयावह होती जा रही है कि कुछ सालों में ही पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। तथा इस तरह प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के शब्द "अगला विश्वयुद्ध जल के लिए होगा" सत्य प्रतीत होने लगता है।

 

 रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। 

पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।

 

JAL HI JIVAN HAI,PAANI BACHAO
जल ही जीवन है



भारत में जल प्रबंधन:-

             भारत के प्राचीन काल से ही जल के लिए अधिक समृद्ध क्षेत्र माना जाता रहा है। लेकिन वर्तमान समय में विश्व की अन्य देश की भांति भारत में जल संकट की समस्या ज्वलंत है। भारत में पानी की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता 1951 में 5200 घन मीटर थी, जो 2001 में घटकर 1816 घन मीटर और 2011 के सर्वेक्षण के अनुसार यह 1545 घन मीटर हो गया। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर जगह जल को लेकर गहरी चिंता है गांवों में जल का अभाव की स्थिति और भी दयनीय है। 

              विश्व की सर्वाधिक तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारतीय अर्थव्यवस्था ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के सात दशकों में कृषि उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में बहुआयामी प्रगति की है उच्च विकास दर के साथ भारत जब 21वीं सदीं में प्रवेश कर रहा है तो उसे जल के एक बड़े संकट से गुजरना पड़ रहा है यह संकट नागरिकों को पेयजल के नैसर्गिक अधिकार को भी जोखिम में डाल रहा है तो दूसरी ओर देश के लाखों लोगों की जीविकाओं के समक्ष समस्या पैदा कर रहा है।  औद्योगीकरण की ओर तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था तथा शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति से जल की मांग में वृद्धि हो रही है तो दूसरी ओर जल आपूर्ति को बढ़ावा पाने की संभाव्यता सीमित है।  भूमिगत जल स्तर लगातार घटता जा रहा है, नदियों में जल का प्रवाह घट रहा है, समग्र रूप से जल की गुणवत्ता में हास की प्रवृत्ति पाई जा रही है। देशभर के सभी जल स्त्रोत भूमिगत नदियाँझीलेंसरोवर आदि अनुपचारिक गंदे जल-मल को इसमें लगातार गिराते रहने से खतरनाक स्थिति तक प्रदूषित हो रहे हैं। औद्योगिक अर्द्धठोस कचरे, सीवरेज एवं खेतों के पानी नदियों में गिराने से नदियों के शहरी भाग में जल में "ऑक्सीजन की जैविक मांग" काफी कम हो गई है। शहरी क्षेत्रों का यह गंदा जलमल नदियों और झीलों में जहरीले रसायनों जीवाणु और विषाणु को छोड़ रहा है। एक आकलन के अनुसार भारत के शहरों से प्रतिदिन 40000 मिलियन लीटर जलमल निकलता है जिसमें से मात्र 20% ही उपचारित हो पाता है। 


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भारत में जल की मांग एवं पूर्ति :

            जल संसाधन मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों से भारत के समस्त जल संसाधनों की संभाव्यता 1869 बिलियन घन मीटर है। जल संसाधन मंत्रालय की स्थाई समिति के अनुसार सन 2025 तक भारत में जल की कुल मांग 1023 बिलियन घन मीटर हो जाएगी।यदि सरकारी आकलन वाष्पीकरण की दर 40% को मान लिया जाए तो भारत में अधिक जल की आपूर्ति मांग से अधिक है। लेकिन यदि वैश्विक स्तर पर वाष्पीकरण की दर 60% को संज्ञान में लिया जाता है तो भारत में जल की आपूर्ति 654 बिलियन घन मीटर और मांग 634 बिलियन घन मीटर हैजो चिंता का विषय है। इतना ही नहीं यदि जल की मांग का प्रारूप वर्तमान जैसा ही रहता है तो 2030 तक भारत में जल की कुल मांग का आधा ही पूरा हो सकेगा।

 
जल संकट कारण :

            यद्यपि शुद्ध जल की मात्रा सीमित है और कई कारणों से इसकी प्रारंभिक मात्रा से इसकी सतत कमी देखी जा सकती है। जल संकट का सबसे सामान्य और वृहद कारण सिर्फ गति से बढ़ रही जनसंख्या शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण और इसके लिए जल की आवश्यकता अथवा मांग को पूर्ण करना हमारे लिए आज एक चुनौती बन चुका है। दूसरी और स्वच्छ पेयजल की प्राप्ति कृषि कार्यों विशेषकर सिंचाई हेतु मृदु जल की उपलब्धता तथा पनबिजली विकास के प्रयास से जल के अनुच्छेद तथा और संतुलित उपयोग को बढ़ावा दिया है।

 

            जल संकट के कारणों का मनन किया जाए तो स्पष्ट होता है कि यह प्रकृति जनित समस्या नहीं है। वास्तव में हमारी अति दोहन की प्रवृत्ति तथा उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा मिलने के कारण से ही सर्व सुलभ जल का संकट गहराया हुआ है। गांधी जी ने कहा था कि - "हमारी पृथ्वी मनुष्य की जरूरतों को पूरा कर सकती है, किंतु मनुष्य के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है"। बढ़ती आबादी प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उपलब्ध संसाधनों के प्रति लापरवाही ने मनुष्य के सामने जल संकट खड़ा कर दिया है। भूमिगत जल ने पुनः पूरण के अभाव में परंपरागत जल स्रोत सूख रहे हैं।

 

            जल संकट की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है जो 1 दिन में उत्पन्न हुई है, बल्कि यह समस्या धीरे-धीरे उत्पन्न हुई है। इस समस्या ने आज विकराल रूप ले लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की खाद्य तथा कृषि संगठन के 22 मार्च 2012 की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि प्रतिवर्ष 15000 मीटर जल मानवीय क्रियाकलापों से बर्बाद हो जाता है। 

 

जल का सही उपयोग :

            हमारी देश की औसत वर्षा 1170 मिलीमीटर है, जो विश्व की समृद्धशाली भाग पश्चिमी अमेरिका की औसत वर्षा से 6 गुना ज्यादा है। यह सिद्ध करता है कि किसी क्षेत्र की समृद्धि वहां औसत वर्षा के समानुपाती नहीं है। प्रश्न यह है कि आने वाले वर्षों के कितने भाग का हम प्रयोग करते और कितने भाग को हम बेकार जाने देते हैं। बारिश के पानी को हम जितना ज्यादा जमीन के अंदर जाने देंगे भू जल संग्रहण होगा और उतना ही हम जल संकट को दूर कर सकेंगे तथा मृदा अपरदन रोकते हुए देश को सूखे और अकाल से बचा सकेंगे। अतः आवश्यकता है वर्षा की एक-एक बूंद को भूमिगत संग्रहण कर के भविष्य के लिए एक सुरक्षा निधि बनाई जाए। आंकड़े के अनुसार यदि हम अपने देश के जमीनी क्षेत्रफल में से मात्र 5% में ही गिरने वाले वर्षा के जल का संग्रहण कर सके तो एक बिलियन लोगों को 100 लीटर पानी प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन मिल सकता है। 

 

            वर्तमान समय में 80% बरसाती जल नदियों के रास्ते समुद्र में बह जाता है। इससे निचले इलाकों में भी बाढ़ आ जाती है। यदि इस जल को भूगर्भ की टंकी में डाल दी जाए तो दो तरफ लाभ होगा। एक तो बाढ़ का समाधान होगा दूसरा भूजल स्तर बढ़ेगा। पश्चिमी राजस्थान और मिजोरम में अधिकांश घरों में भीतर गोल बड़ी-बड़ी टंकियां बनाई जाती है। घरों की ढलानदार छतों से वर्षा का पानी पाइपों के द्वारा इन टंकियों में जाता है। पानी उपलब्ध ना होने पर इस पानी का उपयोग किया जाता है। 

 

जल संकट निवारण के लिए कुछ मुख्य सुझाव निम्न है :-

    1) जल का संस्कार समाज के हर व्यक्ति को स्कूलों में सिखाना चाहिए। 

    2) भूजल दोहन अनियंत्रित तरीके से न हो आवश्यक कानून होना चाहिए। 

    3) तालाबों और अन्य जल संसाधनों में समाज यह समूह का बराबर अधिकार होना चाहिए। 

    4) मुफ्त बिजली योजना समाप्त हो। 

    5) नदियों और तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखा जाए। 

    6) नदियों और नालों पर चेक डैम बनाए जाए। 

    7) खेतों में वर्षा के पानी को संग्रहित किया जाए। 

 

राष्ट्रीय जल फ्रेमवर्क विधेयक 2016 :

            जल के बचाव संरक्षण एवं विनियमन हेतु प्रशासकीय सिद्धांतों तथा इनसे जुड़े मुद्दों पर एक फ्रेमवर्क बनाए जाने के लिए केंद्र सरकार ने एक व्यापक विधेयक का मसौदा तैयार किया है, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को जल उपलब्ध कराना राज्य का दायित्व होगा तथा जाति, पंथ, संप्रदाय, धर्म, समुदाय, वर्ग, लिंग, आयु, विकलांग, न आर्थिक परिस्थिति आदि को ध्यान में रखें बिना सभी को जल प्राप्त कराना होगा। 

 

            पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र के लातूर में पानी की भीषण समस्या के चलते वहां पानी की ट्रेन भेजनी पड़ती है। ऐसी स्थिति न आए इसलिए हमें अपने आप को तैयार करना होगा। आज विश्व में तेल को लेकर युद्ध हो रहा है भविष्य में जल को लेकर हो सकता है। सोना, चांदी, पेट्रोलियम के बिना जीवन संभव है, मगर बिना पानी सब सुना है, उजाड़ है। भारतीय संस्कृति में जल को वरुण देव के रूप में पूजा जाता है। अतः जल के प्रत्येक बूंद का संरक्षण एवं सदुपयोग करने का कर्तव्य निभाना आवश्यक है। हमें सरकार के सहयोग से या स्वयं के समझ से भी जल का संरक्षण करना यथा संभव करना चाहिए। 


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