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आजाद हिन्द फौज की स्थापना

आजाद हिन्द फौज

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आजाद हिन्द फौज का गठन जापान (टोक्यो) में जापानी सरकार की सहायता से की गई थी। 

आजाद हिन्द फौज को हम 2 चरणों में पढ़ सकते हैं :-


प्रथम चरण :-

  • आजाद हिन्द फौज के गठन का सबसे पहला विचार कैप्टन मोहन सिंह के मन में आया। 
  • आजाद हिन्द फौज के गठन के लिए 28-30 मार्च 1942 को टोक्यो में एक सम्मलेन बुलाया गया। 
  • कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं एन एस  गिल के सहयोग से आजाद हिन्द फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) का गठन किया गया। 
  • आजाद हिन्द फौज की प्रथम डिवीज़न का गतहन १ सितम्बर 1942 को कैप्टन मोहन सिंह के अधीन हुआ था इसमें लगभग 16300 सैनिक थे। 
  • बाद में कैप्टन मोहन सिंह ने जापानी सेना से वार्ता कर लगभग 60000 भारतीय युद्धबंदियों को आजाद हिन्द फौज में शामिल कर लिया। 



द्वितीय चरण :-

  • आजाद हिन्द फौज का द्वितीय चरण  आरम्भ हुआ जब सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे। 
  • सुभासचन्द्र बोस जुलाई 1943 को पनडुब्बी से जापान से  नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे। 
  • 4 जुलाई 1943 को रास बिहारी बोस ने सुभाषचंद्र बोस को आजाद हिन्द फौज का कमाण्डर बनाया। 
  • सिंगापुर में उन्होंने "दिल्ली चलो" का नारा दिया। 
  • आजाद हिन्द फौज के सिपाही सुभाषचंद्र बोस को "नेताजी" कहते थे। 
  • सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर एवं रंगून में  आजाद हिन्द फौज  मुख्यालय बनाया।
  • सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में अस्थायी भारत सरकार "आजाद भारत सरकार" की स्थापना की। 




जुलाई 1944 में  नेताजी ने महात्मा  सम्बोधित करते हुए कहा कि - 
"भारत की स्वतंत्रता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका है। हे राष्ट्रपिता! भारत मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।" 

  • सुभाषचंद्र बोस ने  आह्वाहन करते हुए कहा "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।"
  • जून 1944 तक जापानियों के साथ मिलकर भारत की पूर्वी सीमा एवं बर्मा से युद्ध लड़ा। परन्तु दुर्भाग्य वश दूसरे विश्व युद्ध में जापान के पराजय के कारण आजाद हिन्द फौज को भी पराजय का मुख देखना पड़ा। 
  • आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों और अधिकारियों को अंग्रेजों ने 1942 में गिरफ्तार कर लिया। 
  • 18 अगस्त 1945 को एक हवाई दुर्घटना में सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हो गई, दुर्घटना में उनकी अभी भी संदेह के घेरे में है। 
  • आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों और अधिकारियों पर अंग्रेजी सरकार ने दिल्ली के लाल किले में नवम्बर 1945 में मुक़दमा चलाया। 
  • मुख्य अभियुक्त कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लों एवं मेजर शाहनवाज खान पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। 
  • इन तीनों के पक्ष में सर तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, भूलाभाई देसाई और के एन काटजू ने दलीलें दी।  
  • लेकिन फिर भी इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। 
  • इस निर्णय के खिलाफ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई, नारे लगाए गए-- "लाल किले को तोड़ दो. आजाद हिंद फौज को छोड़ दो।"
  • विवशतः तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदंड की सजा को माफ कर दिया। 







सिंगापुर की अस्थायी भारत सरकार "आजाद भारत सरकार"  :--

  • सुभाषचंद्र बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनो थे। 
  • वित्त विभाग -----    एस सी चटर्जी 
  • प्रचार विभाग -----    एस ए अय्यर 
  • महिला संगठन विभाग -----    लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया था। 
  • जर्मनी, जपान तथा उसके समर्थक देशों ने इस सरकार को मान्यता

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