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गुप्त-साम्राज्य का उदय


गुप्त-साम्राज्य का उदय



गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अंत में प्रयागराज के निकट कौशांबी में हुआ। 

गुप्त कुषाणों के सामंत थे।

इस वंश का आरंभिक राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में था। गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्व वाला था। 

गुप्तों के आरंभिक अभिलेख मुख्यः उत्तरप्रदेश में पाए गए हैं। यहीं से गुप्त शासक कार्य संचालित करते थे और अनेक राज्यों में बढ़ते गए। 

गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य मध्य गंगा मैदान, प्रयागराज, साकेत (आधुनिक अयोध्या) और मगध पर स्थापित किया। 




गुप्तों की उत्पत्ति:- 

गुप्तों की उत्पत्ति संबंधी विचारों के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। 

कुछ विचारक इन्हें शूद्र अथवा निम्न जाति से उत्पन्न मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि गुप्तों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई है। 



गुप्तों के विषय में जानकारी:-

गुप्त राजवंशों के इतिहास के विषय में जानकारी साहित्यिक, पुरातात्विक
प्रमाणों तथा विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण से प्राप्त हैं।

साहित्यिक प्रमाण:-

साहित्यिक प्रमाणों में पुराणों, बौद्ध व जैन ग्रंथों, स्मृतियों, लौकिक साहित्यों आदि आते हैं।


पुराण:- 

सर्वप्रथम प्रमाण हैं, जिसमें मत्स्य पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण द्वारा प्रारंभिक शासकों के बारे में जानकारी मिलती हैं। 


बौद्ध ग्रंथ:- 

बौद्ध ग्रंथमें आर्य मंजुश्रीमूलकल्प महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त वसुबंधु चरित्र तथा चंद्रगर्भ परिपृच्छ से गुप्त वंश गुप्त वंश इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। 

जैन ग्रंथों:- 

जैन ग्रंथो में हरिवंश और कुवलयमाला महत्वपूर्ण ग्रंथ है। 

स्मृतियों:- 

स्मृतियों में नारद, पराशर और बृहस्पति स्मृतियों में गुप्त काल की सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक इतिहास की जानकारी मिलती हैं।

लौकिक साहित्य:- 

इसके अंतर्गत विशाखदत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम (नाटक) से गुप्त नरेश रामगुप्त तथा चंद्रगुप्त के बारे में जानकारी मिलती है। 

अन्य साहित्यिक स्त्रोत:- 

अन्य साहित्यिक स्त्रोतों में अभिज्ञानशाकुंतलम्, रघुवंश महाकाव्य, मुद्राराक्षस, हर्षचरित, वात्सायन के कामसूत्र से गुप्त काल में शासन व्यवस्था एवं नगर जीवन के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। 



अभिलेखीय साक्ष्य:-

अभिलेखीय साक्ष्य के अंतर्गत 
समुद्रगुप्त का     ----- प्रयाग प्रशस्ति प्रमुख है (जिसमें समुद्रगुप्त के राज्याभिषेक उनके दिग्विजय तथा व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है)। 

चंद्रगुप्त द्वितीय का     ----- उदयगिरि से प्राप्त गुहा लेख,  
                                      विलसड स्तम्भ लेख 
                                      मेहरौली का लौह स्तंभ लेख

स्कन्दगुप्त का     ----- भीतरी स्तम्भ लेख, 
                                 जूनागढ़ अभिलेख 
                                 कहोम अभिलेख,

भानुगुप्त का      ------ एरण अभिलेख महत्वपूर्ण है। 




विदेशी यात्रियों के विवरण:- 


फाह्यान का यात्रा(चीनी यात्री) विवरण में जो चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में भारत आया था उसने मध्य देश की जनता का वर्णन किया है। 

व्हेनसांग, सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग के विवरण से भी गुप्त इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं। उसने बुद्धगुप्त, कुमार गुप्त प्रथम, शक्रादित्य तथा बलादित्य आदि शासकों का उल्लेख किया है। 
उसके विवरण से यह ज्ञात होता है कि कुमारगुप्त ने नालंदा विहार की स्थापना की थी। 



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