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गुप्त वंश का संस्थापक व वास्तविक संस्थापक

गुप्त वंश का संस्थापक व वास्तविक संस्थापक


गुप्तवंश का संस्थापक था-श्रीगुप्त। 

गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम था।

निचे उन्ही को हम विस्तार से जानेंगे :-


श्री गुप्त (240-280ई.):- 

प्रभावती गुप्त के पूना स्थित ताम्रपत्र अभिलेख में श्री गुप्त का उल्लेख गुप्त वंश के आदिराज के रूप में किया है।  

लेखों में उनका गोत्र धरण बताया गया है। इनका शासनकाल (240-280 ई.) तक रहा। 

उपाधि:-

श्री गुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की।
तत्कालीन समय में महाराज उपाधि सामंतों द्वारा धारण की जाती थी, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि श्री गुप्त किसी शासक के अधीन शासन करता था। 

इत्सिंग के अनुसार श्री गुप्त ने मगध में एक मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर के लिए 24 गांव दान में दिए थे।  




घटोत्कच (280-319 ई.):- 

लगभग 280 ई. में श्री गुप्त ने घटोत्कच को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
 
प्रभावती गुप्त के पूना एवं रिद्धिपुर ताम्रपत्र अभिलेखों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम राजा बताया गया है। 

इसका राज्य संभवतः मगध के अगल बगल में ही सीमित था। 
इसने लगभग 319 ई. तक शासन किया। 

उपाधि :- इसने भी महाराज की उपाधि धारण की। 





चंद्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.):- 

घटोत्कच का उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त प्रथम एक प्रतापी राजा था। 

उसने उस समय के प्रसिद्ध लिच्छवि कुल की कन्या कुमार देवी से विवाह किया। 

इसकी पुष्टि दो प्रमाणों से होती है:- 
1) पहला प्रमाण स्वर्ण सिक्के जिसमें चंद्रगुप्त कुमार देवी प्रकार, लिच्छवि प्रकार, राजारानी प्रकार, विवाह प्रकार आते हैं। 

2) दूसरा प्रमाण समुद्रगुप्त के प्रयाग अभिलेख हैं, जिसमें उसे लिच्छविदौहित्र कहा गया है। 

कुमार देवी के साथ विवाह कर चंद्रगुप्त प्रथम ने वैशाली का राज्य प्राप्त किया। 

चंद्रगुप्त कुमार देवी प्रकार के सिक्के के पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी दुर्गा की आकृति बनी है। 

उपाधि:- इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। 


गुप्त संवत:- शासक बनाने के बाद चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त संवत (319-320 ई.) के नाम से चलाया। 

गुप्त संवत (319-320 ई..) तथा शक संवत (78 ई.) के बीच 241 वर्षों का अंतर है। 



समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी बनाने के बाद चंद्रगुप्त-I ने सन्यास ग्रहण कर लिया। 






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