संपत्ति का अधिकार कानूनी अधिकार:-
- संविधान के प्रवर्तन के समय संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी।
- संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(च) तथा अनुच्छेद 31 में इस संबंध में प्रावधान किया गया था।
- संविधान के पहले, 4थे , 25वे तथा 29वें संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार की सीमा को काफी कम कर दिया गया था।
- 44 वें संविधान संशोधन -1978 -द्वारा संविधान के अनुच्छेद 19(1)(च) और अनुच्छेद (31) को निरस्त करके संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर दिया गया,
Sampatti-Ka-Adhikar |
- तथा उसी संशोधन द्वारा संविधान में अनुच्छेद 300-(क) जोड़कर संपत्ति के अधिकार को कानूनी (विधिक) अधिकार बना दिया गया।
- इस अनुच्छेद के अनुसार संपत्ति का अधिकार अब केवल कानूनी अधिकार है, इसका तात्पर्य है कि राज्य को किसी व्यक्ति की संपत्ति को लेने का अधिकार है लेकिन ऐसा करने के लिए उसे किसी विधि का प्राधिकार करना चाहिए।
- कार्यपालिका के आदेश द्वारा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता अर्थात विधि द्वारा ही किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है।
- अप्रैल 2008 में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति का अधिकार अब भले ही मौलिक अधिकार नहीं रहा, तथापि यह अभी भी एक संवैधानिक अधिकार है तथा यह मानवाधिकार से भी जुड़ा है।
- अतः कानूनी तौर पर जब तक अनिवार्य नहीं हो तब तक किसी व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
मूल अधिकारों का निलंबन या परिसीमन:-
- मूल अधिकारों का निलंबन या परिसीमन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:-
- मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त निरबंधन आरोपित किए जा सकते हैं जिस के संबंध में अनुच्छेद 19 (2) से 19(6) में प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 15(क) तथा (4) के अनुसार सामाजिक उद्देश्य के प्रवर्तन जैसे महिलाओं बच्चों तथा पिछड़ी जातियों के कल्याण के लिए राज्य मूल अधिकारों में हस्तक्षेप कर सकता है।
- अनुच्छेद-34 के अनुसार जब किसी क्षेत्र में सेना विधि या मार्शल लॉ प्रवर्तन में हो, तब संसद द्वारा मूल अधिकारों पर निरबंधन आरोपित कर सकती है।
- जब देश में अनुच्छेद-352 के अधीन राष्ट्रीय आपात लागू किया गया हो तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का स्वतः निलंबन हो जाता है और राष्ट्रपति अधिसूचना जारी करके अन्य मूल अधिकारों को समाप्त कर सकता है।
- लेकिन अनुच्छेद -20 और अनुच्छेद -21 द्वारा प्रदत्त अधिकार कभी भी समाप्त नहीं किए जा सकते।
- संसद संविधान में संशोधन करके मूल अधिकारों को निलंबित कर सकती हैं लेकिन ऐसा करते समय वह संविधान के मूल ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती
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