* कृषि कर्ज माफी कृषि समस्या या कृषि समाधान *
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषकों की स्थिति स्वतंत्रता के 70 वर्षों बाद भी नहीं बदली है। 2020 में किसानों की आय ₹71424 लगभग प्रतिवर्ष है मतलब ₹6424 प्रतिमाह। जोकि भारत के प्रति व्यक्ति आय से बहुत कम है। आज भी किसान कृषि के ऋण के तले इस कदर दबा हुआ है कि जिसके कारण 2016-2018 के मध्य लगभग 36000 किसानों ने आत्महत्या की है (NCRB की रिपोर्ट अनुसार)। पिछले कुछ वर्षों से कृषि ऋण माफी का एक नया फैशन निकला है जिससे किसानों को त्वरित लाभ अवश्य प्राप्त होता है, किंतु या मंथन करने की आवश्यकता है कि - क्या कर्ज माफी कृषि समाधान है अथवा समस्या?
वर्ष 2018 मई जून के माह में मुंबई में लगभग 20000 किसानों ने
आंदोलन किया। जिसमें उनकी मुख्य मांग थी कृषि ऋण माफी। उसी प्रकार वर्ष 2018
में ही अक्टूबर माह में किसानों ने
दिल्ली में धरना प्रदर्शन किया। जिसे सभी विपक्षी-दलों का समर्थन प्राप्त था। इस
प्रकार यह अब धीरे-धीरे राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में
विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के चुनावी घोषणाओं एवं परिणामों को
देखने से यह ज्ञात होता है कि जिस किसी दल ने किसानों का कृषि ऋण माफ करने की
घोषणा की है उस दल की सरकार बनी है। फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश की सरकार हो,
मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ की सरकार हो।
यदि सरकार इस ऋण को स्वयं चुका कर
किसानों को ऋण मुक्त करती है, तो यह तो वही बात
हुई कि कर्ज एक सर से छूटकर दूसरे सर पर चढ़ जाना। सरकार को जिस कोष से ऋण प्राप्त होती है वह कोष किसके माध्यम भरे
जाते हैं। अर्थात अब कृषि ऋण का बोझ किसके ऊपर बोझ
पड़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट अनुसार महाराष्ट्र पर 3.79 लाख करोड़ रुपए
तथा उत्तर प्रदेश पर 3.27 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। उसी प्रकार छत्तीसगढ़ पर
लगभग 55000 करोड का कर्ज है। वर्त्तमान छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी किसानों के अल्पकालीन ऋण के रूप में 6100 करोड
रुपए माफ किए हैं। जिसके लिए उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण लेना पड़ा। सक्रिय
रूप से उसका बोझ प्रदेश के कर प्रदाता के ऊपर ही आता
है।
इसके साथ-साथ कृषि ऋण माफ करने से
किसानों को ऋण वापस नहीं करने की लत लग जाएगी तथा जो किसान कड़ी मेहनत कर कृषि कर
समय पर ऋण वापसी करता है वह भी हतोत्साहित होंगे। इस प्रकार इसका एक दुष्चक्र आरंभ
हो सकता है। जिसके कारण वश कृषि व्यवस्था
चरमरा कर धराशाई हो सकती है। भारत का बैंकिंग सिस्टम किसी भी कीमत पर किसानों की
कर्ज माफी जैसी योजना का समर्थन नहीं करता है। पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी
रिपोर्ट "इकोनामी स्ट्रेटजी ऑफ इंडिया" में यह
कहा है कि - कृषि कर्ज माफी राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए भारी परेशानी का सबब
बन जाती है तथा उससे कृषि निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसानों की
सहायता के लिए अन्य उपाय अपनाने चाहिए।
कृषकों की स्थिति सुधारने व उनकी आय
दोगुनी करने 2004 में गठित एम. एस.
स्वामीनाथन समिति ने सुझाव दिए थे जिसके अनुसार उनकी प्रमुख अनुशंसा थी कि -
- कृषि को राज्य सूची के बजाय समवर्ती सूची में लाया जाए
किसानों को अच्छी किस्म का बीज प्राप्त कराया जाए।
- किसानों की सहायता के लिए ज्ञान चौपाल की स्थापना की
जाए।
- अतिरिक्त वह बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटा जाए।
- किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए।
- कर्ज की ब्याज दर 4% तक लाई जाए।
- किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य जो की लागत से 50% अधिक हो लागू किया जाए
इन सुझावों में से कुछ सरकार द्वारा
लागू की गई है। साथ ही साथ बहुत से ऐसी योजनाएं भी लागू की गई है जिससे किसानों को
कुछ सहायता मिले। जैसे छत्तीसगढ़ राज्य में 0% ब्याज पर कृषि ऋण उपलब्ध होता है।
केंद्रीय सरकार ने समय पर भुगतान नहीं कर पा रहे किसानों को केवल 2% ब्याज दर पर
ऋण भुगतान हेतु प्रेरित किया है। साहूकारों से ऋण लेने के बजाय, बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा
है ताकि उनका शोषण ना हो। फसलों का बीमा कराने प्रेरित किया जा रहा है। वर्तमान
सरकार के प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि द्वारा प्रत्येक वर्ष ₹6000 किसानों को कृषि सहायता के रूप में देने का निर्णयअनुपूरक बजट में
किया है। छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने सुराज कार्यक्रम द्वारा
नरवा, घुरवा, गरुआ अऊ बड़ी योजना आरंभ
की है। गो-धन योजना के माध्यम से गौ-पालकों को अतिरिक्त आय प्राप्त करने का एक
आयाम दिया है। इस योजना से 2 लाभ हैं - 1) अतिरिक्त आय, 2)
जैविक खाद का निर्माण किया जायेगा जिससे उर्वरकों के रसायन से फसलों को बचाया जा
सकेगा।
अन्य सुझाव :
जिस प्रकार अमेरिका में किसानों को
दो प्रकार की सब्सिडी "ब्लू-बॉक्स" और "ग्रै-बॉक्स" दिया जाता है। जिसमें ग्रै-बॉक्स के माध्यम से अधिक
उत्पादन देने वाले बीजों व उर्वरक दिए जाते हैं तथा ब्लू-बॉक्स के माध्यम से आधुनिक कृषि यंत्र खरीदने हेतु सब्सिडी दी जाती है। इस
प्रकार की योजना भारत में लागू कर तथा कृषकों को सामूहिक रुप से करने प्रेरित कर
आदि उपायों से किसानों की सहायता की जा सकती है तथा उनकी आय में वृद्धि की जा सकती
हैं।
वर्तमान में कृषको की समस्या गंभीर है। परंतु यह
क्षेत्र संभावनाओं से भरा है। किसानों की कृषि
कर्ज माफी करने एक स्तर तक सहीं है। यह किसानों को
त्वरित सहायता प्रदान करता है। किंतु इसे स्थाई नीति बना लेना किसी भी राज्य की
अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होता। अतः सरकारों को किसानों की समस्या के हल
करने हेतु अन्य उपायों को अपनाना चाहिए जिससे किसान अधिक उत्पादन करने को प्रेरित
हो और जीडीपी में अपना प्रमुखता से सहयोग दे सकें।
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