* संविधान की विशेषताएं *
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भारतीय संविधान की अनेक विशेषताएं हैं, जो इस प्रकार है :-
- लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान
- प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष तथा समाजवादी संविधान
- स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना
- संसदीय पद्धति की सरकार की स्थापना
- विधि के शासन की स्थापना
- मूल अधिकारों का समावेश
- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का समावेश
- नम्य तथा अनम्य संविधान
- केंद्राभिमुख संविधान
- वयस्क मताधिकार की व्यवस्था
- एकल नागरिकता का प्रावधान
- मूल-कर्तव्यों का समावेश
- अनेक देशों के संविधान के तत्वों का समावेश
1) लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान:-
भारत के संविधान का निर्माण विशेष समय पर विशेष संविधान सभा द्वारा किया गया और इसे पूर्ण रूप से लिखा गया है।
इस संविधान में लिखित रूप में प्रशासन तथा संवैधानिक अधिकारों के कार्यों का वर्णन, न्यायालयों के गठन तथा उनकी अधिकारिता, केंद्र राज्य संबंध, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संरक्षण, मूल अधिकार तथा उनके संरक्षण एवं राज्य के नीति निदेशक तत्वों के संबंध में व्यापक रूप से लिखित व्यवस्था की गई है।
जिस समय भारत का संविधान लागू किया गया उस समय इसमें 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियां थी वर्त्तमान में संविधान में अनुच्छेदों की संख्या गणना की दृष्टि से 444 तथा अनुसूचियों की संख्या 12 हो गई है।
2) प्रभुत्व संपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष तथा समाजवादी संविधान:-
इसके माध्यम से भारत को संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष और समाजवादी राज्य की स्थापना की गई है।
प्रभुत्व संपन्न राज्य का तात्पर्य ऐसे राज्य से है जो बाहरी नियंत्रण से मुक्त हो और जिस पर किसी अन्य देश की प्रभुता ना हो। जो आपने आंतरिक एवं विदेशी नीतियों का निर्धारण करने में स्वयं सक्षम हो तथा किसी अंतरराष्ट्रीय संधि या समझौते को मानने के लिए बाध्य न हो।
लोकतंत्र का अर्थ है ऐसी शासन व्यवस्था जिसके अंतर्गत सरकार की स्थापना जनता द्वारा तथा जनता के लिए की जाती है। भारत का शासन सीधे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा संचालित किया जाता है।
पंथनिरपेक्ष का अर्थ है ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें सरकार का कोई धर्म नहीं होता और वह किसी धर्म को न तो समर्थन प्रदान करता है और न किसी धर्म या धार्मिक क्रियाकलापों का विरोध करता है। भारत में सभी धर्मों को समान आदर दिया जाता है। 1976 में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा पंथनिरपेक्ष शब्द को संविधान की उद्देशिका में शामिल करके धर्मनिरपेक्षता को और अधिक स्पष्ट किया गया है।
समाजवादी राज्य की स्थापना संविधान का मूल उद्देश्य है और इसकी अभिपुष्टि संविधान की उद्देशिका में समाजवादी शब्द को अंत:स्थापित करके और कई अन्य क्षेत्रों में संशोधन करके तथा कई नियमों को अंत:स्थापित करके की गई है।
3) स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना:-
भारतीय संविधान द्वारा स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। न्यायाधीशों की नियुक्ति, वेतन-भत्ता तथा पद से हटाए जाने के संबंध में संविधान में स्पष्ट प्रावधान किया गया है। जिस कारण सरकार उन पर दबाव नहीं डाल सकती।
4) संसदीय पद्धति की सरकार की स्थापना:-
भारत का संविधान भारत में संसदीय पद्धति की सरकार की व्यवस्था करता है। संसदीय व्यवस्था की सरकार की मुख्य विशेषता यह है कि सरकार विधायिका के प्रति उत्तरदाई होती है। इस प्रकार की सरकार की दूसरी विशेषता यह है कि कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान जनता का प्रतिनिधि होता है और जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है। भारत का संविधान संसदीय पद्धति की स्थापना करता है क्योंकि केंद्र की सरकार लोकसभा के प्रति और राज्यों की सरकार विधानसभाओं के प्रति उत्तरदाई होते हैं। प्रधानमंत्री तथा राज्यों में मुख्यमंत्री क्रमशः लोक सभा के सदस्यों तथा विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
5) विधि के शासन की स्थापना:-
भारतीय संविधान भारत में विधि के शासन की स्थापना करता है। इसके लिए अनुच्छेद 13, 20, 21, 22, 32, 226 तथा 256 में व्यापक प्रावधान किया गया है। भारत में संविधान सर्वोच्च है और इस कारण कोई भी व्यक्ति, अधिकारी संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर सकता। भारत में राज्य के प्रत्येक अंग विधि के शासन से नियमित तथा नियंत्रित होते हैं।
6) मूल अधिकारों का समावेश:-
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों को समाविष्ट किया गया है तथा यह अधिकार नागरिकों तथा गैर-नागरिकों दोनों को प्रदान किया गया है। भारत के संविधान में जोड़े गए मूल अधिकार संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। ऐसे अधिकारों का तात्पर्य उन अधिकारों से हैं जो मनुष्य के लिए आवश्यक हो तथा मनुष्य को जन्म से ही प्राप्त हो। इन अधिकारों को मानव अधिकार भी कहा जाता है।
7) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का समावेश:-
संविधान के भाग -4 में कुछ ऐसे निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है जो राज्य के प्रशासन के लिए मूलभूत हैं तथा जिनका पालन करना राज्य का पवित्र कर्तव्य है। इन्हीं निर्देशक तत्वों के माध्यम से देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रावधान किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने अपने कई निर्णय में कहा है कि कुछ निदेशक तत्व राज्य के लिए मूलभूत हैं और राज्यों द्वारा उनका पालन किया जाना चाहिए।
8) नम्य तथा अनम्य संविधान:-
भारत के संविधान में नम्यता तथा अनम्रता दोनों के लक्षण एक साथ विद्यमान है।
संविधान नम्य इसलिए हैं क्योंकि इसके अधिकतर प्रावधानों को संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।
जबकि अनम्य इसलिए क्योंकि कुछ प्रावधानों को संशोधित करना अत्यंत कठिन है और उसके लिए विशेष प्रक्रिया अपनायी जाती है।
9) केंद्राभिमुख संविधान:-
वैसे तो सामान्यतः भारत का संविधान संघात्मक है लेकिन विशेष परिस्थितियों में जैसे आपातकाल की स्थिति में भारत का संविधान एकात्मक हो जाता है और केंद्राभिमुख हो जाता है अर्थात केंद्र की शक्ति सर्वोच्च हो जाती है।
10) वयस्क मताधिकार की व्यवस्था:-
सरकार का गठन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है।
प्रतिनिधियों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है।
संविधान के प्रवर्तन के समय मतदान का अधिकार केवल उन्हें था जो 21 वर्ष की आयु पूरी कर लिए हैं लेकिन 61 वें संविधान संशोधन द्वारा मतदान का अधिकार उन व्यक्तियों को भी प्रदान कर दिया गया है जो 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके हैं।
11) एकल नागरिकता का प्रावधान:-
सामान्यतः संघीय संविधान में दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है एक संघ की दूसरी राज्य की।
लेकिन भारतीय संविधान इसका अपवाद है। भारतीय संविधान संघीय संविधान होते हुए भी एकल नागरिकता का प्रावधान करता है।
12) मूल कर्तव्यों का विवरण:-
भारतीय संविधान इस अर्थ में विशिष्ट है कि इसमें नागरिकों के मूल कर्तव्य को भी जोड़ा गया है।
भारत संविधान के प्रवर्तन के समय संविधान में इन कर्तव्यों को शामिल नहीं किया गया था लेकिन 42 वें संविधान संशोधन द्वारा मूल कर्तव्यों को संविधान जोड़ा गया है।
13) कई विदेशी संविधानो के तत्वों का समावेश:-
भारतीय संविधान का निर्माण के लिए गठित विशेष संविधान सभा के सदस्यों ने कई देशों के संविधान का अध्ययन किया किया और विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन कर विशिष्ट गुणों को संविधान में सम्मिलित किया।
भारतीय संविधान के निर्माण के समय लगभग 60 देशों के संविधान के मुख्य तत्वों को संविधान में शामिल किय गया।
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