* सिन्धु सभ्यता के निवासियों का धार्मिक जीवन *
धार्मिक जीवन के बारे में अधिकांश जानकारी पुरातात्विक स्त्रोतों जैसे:- मूर्तियों, मुहरों, ताम्र फलक, कब्रिस्तान आदि से मिलता है |
प्राप्त स्त्रोतों के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं :--
- इस काल की धार्मिक मान्यताओं में हिन्दू धर्म की अनेक विशेषताएं शामिल थी |
- वे देवी देवताओ की पूजा करते थे |
- हमें कही भी मंदिरों के प्रमाण तो नहीं मिले है, फिर भी कई ऐसे प्रमाण हैं जो दर्शाते है कि वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और पूजा - पाठ करते थे
- मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी |
- सिन्धुवासी मातृदेवी की पूजा जननी या उर्वरकता या वनस्पति की देवी के रूप में करते थे |
- धरती को उर्वरकता की देवी मान पूजा कर मुजा करते थे (एक स्त्री मूर्ति के गर्भ से पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है)
- भगवान शिव की पूजा उस समय भगवान पशुपति नाथ के रूप में होती थी |
- वृक्ष पूजा के प्रमाण भी मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील में मिलता हैं |
- पशुओं में कूबड़ वाला सांड विशेष पूजनीय था |
- नागपूजा के भी प्रमाण मिले हैं |
- लोथल और कालीबंगन से हवन कुंडों का मिलना अग्निपूजा के प्रचलन का प्रमाण है |
- हड़प्पा में जो रीती-रिवाज प्रचलित थे वे आज भी हिन्दूओं में पाए जाते हैं | (जैसे :- महिलाओं का मांग भरना आदि)
- हड़प्पा से प्राप्त मिट्टी की पट्टी पर एक महिषी यज्ञ का दृश्य महिषासुर- मर्दिनी की याद दिलाता है|
- चालाक लोमड़ी और प्यासे कौवें की कहानी हड़प्पा के कलशों पर चित्रित है |
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