संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष के नेता की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए दोनों सदनों "राज्यसभा और लोकसभा" में विपक्ष के नेताओं को वैधानिक मान्यता दी गई है।
विपक्ष के नेता का पद 4थीं -लोकसभा के दौरान सृजित किया गया था।
1 नवंबर 1977, से लागू कानून के अंतर्गत उन्हें वेतन उपयुक्त सुविधा प्रदान की जाती हैं।
विपक्ष के नेता के रूप में उस दल के नेता को मान्यता मिलती है जिस दल की सदस्य संख्या सदन के कुल सदस्यों के 10वें भाग के बराबर या उससे अधिक होती है।
सबसे पहले 1969 में संगठन कांग्रेस के राम सुभाग सिंह को लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता मिली।
इसके बाद 1970 में कांग्रेस के यशवंत राव बलवंत राव चौहान को लोकसभा में तथा कमलापति पार्टी को राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई।
संसद में विपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है।
यहाँ स्पष्ट है कि विपक्षी दाल के नेता के रूप में केवल "दाल" का उल्लेख है, चुनाव पूर्व या चुनाव पश्चात् गठबंधन का नहीं।
अब तक 3 बार नहीं चुने गए हैं विपक्ष के नेता :-
2019 के अप्रैल-मई में आयोजित, 16वीं लोकसभा चुनाव में विपक्ष के किसी भी दल को लोकसभा की कुल सदस्यों की संख्या के 1/10 सदस्य अर्थात न्यूनतम 55 सदस्य की अनिवार्यता पूरी नहीं करने के कारण नेता विपक्ष का पद रिक्त घोषित कर दिया गया है।
1980 व 1984 में भी किसी भी विपक्षी दल द्वारा अनिवार्य मानक को पूरा नहीं करने के कारण भी नेता विपक्ष का पद रिक्त रह गया था।
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