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गुप्त कालीन न्याय व्यवस्था और सैन्य व्यवस्था

 

न्याय प्रशासन

सम्राट राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश एवं अनेक न्यायाधीश होते थे। 

इस काल में अनेक विधि (Law) ग्रंथ संकलित किए गए। 



पहली बार दीवानी और फौजदारी कानून भली-भांति परिभाषित और अलग किये गए। 

चोरी और व्यभिचार फौजदारी कानून में आए और संपत्ति संबंधी विवाद दीवानी कानून में 

व्यापारियों और व्यवसायियों की श्रेणी होती थी। यह श्रेणियां श्रेणीधर्म के आधार पर अपने विवादों का निपटारा करती थी। 

गुप्तकालीन अभिलेखों में न्यायाधीशों का उल्लेख महादंडनायक, दंडनायक एवं सर्वदंडनायक के रूप में मिलता है।


गुप्त कालीन सामाजिक स्थिति


गुप्तकालीन समितियाँ:-

"पूग" नगर में निवास करने वाले विभिन्न जातियों की समिति होती थी। 

"कुल" समान परिवारों के सदस्यों की समिति होती थी। 

यह समितियां राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त थी। 

यह समितियां आपसी विवाद में निर्णय देती थी। 

 

गुप्त कालीन व्यापार एवं वाणिज्य


सैनिक संगठन 


राजा के पास स्थाई सेना थी। 

सेना के चार प्रमुख अंग थें:- 

    1. पदाति,
    2. रथारोही,
    3. अश्वारोही,
    4. गजसेना। 


सर्वोच्च सेना अधिकारी महाबलाधिकृत कहलाता था। 


गजसेना नायक कहलाता था     ----- कटुक 

घुड़सवार नायक कहलाता था    ----- अटाश्वपति 


गुप्त काल के प्रशासन की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि इस समय वेतनों की अदायगी नगद में न होकर सामान्यतः भूमि अनुदान के रूप में की जाती थी। 


गुप्त कालीन राजस्व के स्त्रोत


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