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चुनाव आयोग शक्तियां और लोकतंत्र

* चुनाव आयोग शक्तियां और लोकतंत्र *


स्वतंत्र चुनाव आयोग लोकतंत्र की शक्ति का परिचायक है. . . .  . . .  . . .  . ."राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद"

Chunav-Aayog
चुनाव-आयोग

            भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या लगभग 90 करोड़ थी। इतने बड़े देश में निष्पक्ष व सफलतापूर्वक चुनाव कार्य करवाना मृगमरीचिका के समान प्रतीत होता है। इसलिए भारतीय चुनावों को निकटता से देखने विदेशी पत्रकारों सहित अनेक अधिकारी व राजदूत आते हैं। भारत में निष्पक्ष चुनाव करा पाना माननीय राष्ट्रपति जी के ही शब्दों में चुनाव आयोग की सख्ती का परिचारक है। 


            भारतीय संविधान के अंतर्गत भाग-15 में अनुच्छेद - "324 से 329" तक में भारतीय निर्वाचन आयोग की स्थापना उनके कार्यों तथा शक्तियों के विषय में उपबन्ध किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 324 (1) के अनुसार निर्वाचन आयोग की शक्तियां कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं की जा सकती। उनकी शक्तियां केवल संवैधानिक उपायों तथा संसद निर्मित निर्वाचन विधि से ही नियंत्रित होती है। इस प्रकार जहां कहीं भी संविधान या संसद निर्वाचन विधि के संबंध में मौन है, वही निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग असीमित शक्ति रखता है। जोकि आवश्यक भी है। उच्चतम न्यायालय ने भी उसकी शक्तियों की व्याख्या करते हुए कहा है कि - निर्वाचन हेतु कार्यक्रम निर्धारित करना तथा निर्वाचन कराना केवल निर्वाचन आयोग की ही अधिकारिता है।


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            भारत के प्रथम लोकसभा निर्वाचन से वर्तमान समय तक निर्वाचन आयोग में अनेक सुधार हुए हैं तथा उनके द्वारा अनेक सुधार भी किए गए हैं। भारत के प्रथम निर्वाचन प्रक्रिया को संपन्न कराने में निर्वाचन आयोग को लगभग 6 माह का समय लगा था। जोकि 68 चरणों में संपूर्ण हो पाया था। किंतु समय-समय पर क्रमिक रूप से किए गए सुधारों से आज निर्वाचन कार्यक्रम सरल व सुविधाजनक हो गया है।  चुनाव आयोग द्वारा किए गए सुधारों में मतदाताओं के पहचान हेतु 10वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त "टी.एन.शेषन" द्वारा मतदाता पहचान पत्र जारी कराया गया था। ताकि फर्जी मतदान को रोका जा सके।  बैलट पेपर द्वारा निर्वाचन कराने के स्थान पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त "मनोहर सिंह गिल" के कार्यकाल में EVM का उपयोग पहली बार 1999 के चुनाव में कराया गया। 

 

            स्वैच्छिक मतदान के स्थान पर अनिवार्य मतदान के नियमों का लागू करना, पुरुषों के समान ही महिलाओं को भी मतदान करने उत्साहित करना, अधिकार दिलाना चुनाव आयोग की मुख्य उपलब्धियों में से प्रमुख है। चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने हेतु मतदान की तिथि निर्धारित कर चुनाव के 60 दिन पहले आचार संहिता लागू कर देती है। आचार संहिता की अवधि में सरकार किसी भी प्रकार के लोकलुभावन घोषणाएं नहीं करनासरकारी तंत्र का दुरुपयोग नहीं करना, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा जाति, धर्म व क्षेत्र से संबंधित प्रकरण न उठाना, बल का प्रयोग नहीं करना, बड़ी मात्रा में नकदी लेकर नहीं चलना आदि बिंदु लागू रहती है। 

 

            इनका उल्लंघन करने पर प्रथम बार में चेतावनी, द्वितीय बार चुनाव प्रचार से बाहर तथा तीसरी बार उल्लंघन से उम्मीदवारी रद्द जैसे कार्यवाही का प्रावधान भी किया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त "नवीन चावला" के कार्यकाल में तृतीय लिंग माने जाने वाले समाज को भी चुनाव करने का अधिकार मिला। उसी प्रकार एक कदम और बढ़ाते हुएचुनाव आयोग ने 2019 लोकसभा चुनाव में यह दर्शा दिया है कि चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दल की कठपुतली नहीं है।  सर्वोच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि सुखद अनुभव है कि चुनाव आयोग की शक्तियां वापस आ गई है। चुनाव आयोग ने महिला के ऊपर अभद्र टिप्पणी करने वाले उत्तरप्रदेश के एक नेता पर चुनाव रैली करने पर प्रतिबंध लगाया तो विपक्षी दल के एक अन्य प्रमुख नेता द्वारा भड़काऊ टिप्पणी के कारण उन पर भी 2 दिनों का प्रतिबंध लगाया। 


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            पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के कारण चुनाव आयोग ने पार्टियों के प्रचार-प्रसार पर 19 घंटे पूर्व ही प्रतिबंध लगा दिया था। चुनाव के समय एक प्रकार से सभी शक्तियां निर्वाचन आयोग के पास केंद्रित हो जाती है। जो निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। चुनाव आयोग पर कई बार आरोप भी लगाए जानते हैं कि वह किसी राजनीतिक दल की कठपुतली बन गया है। बार-बार चुनावी प्रक्रिया पर संशय भी जताया जाता है। EVM मशीन की हैकिंग का आरोप लगाया जाता है। तो जवाब में चुनाव आयोग ने EVM मशीन की हैकिंग करने की खुली चुनौती देते हुए समय-समय पर ऐसे आरोपों का खंडन भी किया है। 

 

            2019 के चुनावों में भी चुनाव आयोग पर अनेक प्रकार के आरोप आरोपित किए गए। किंतु चुनाव आयोग ने उन सभी आरोपों का तार्किकता पूर्ण खंडन किया। अवांछित भाषण देने वालों पर कार्यवाही कर प्रतिबंध लगाया तथा वाराणसी क्षेत्र से सांसद उम्मीदवार एक सैनिक जिसे अभद्र व्यवहार तथा सेना कानून को तोड़ने के आरोप में सेना निष्कासित किया गया है उसे योग्यता के आरोप में उम्मीदवारी समाप्त भी करता है। 

 

            अतः चुनाव आयोग अपने कर्तव्यों का पालन करने में पूरी तरह सक्षम है तथा उसे कर्तव्यों का निर्वाह करने हेतु आवश्यक शक्ति भी प्राप्त है। वह अब न केवल मुक्त संस्था के रूप में कार्य कर रही है बल्कि प्रतिबंध लगाकर वह उम्मीदवारी समाप्त कर लोकतंत्र की पूर्ण स्थापना भी कर रही है। अतः यह कहना सर्वथा अनुचित है कि चुनाव आयोग एक निष्क्रिय संस्था है। बल्कि यह एक ऐसे लोकतंत्र की स्थापना में सहायक है, जिसकी सरकार लोगों के लिए तथा लोगों के द्वारा गठित होती है। 

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