मध्यकालीन भारत में सूफी आंदोलन
मध्य काल के समय समाज में ऐसे सुधार की सख्त आवश्यकता थी जिसके द्वारा इस्लाम में कट्टरपंथियों के प्रभाव को कम किया जा सके। 10 वीं शताब्दी के बाद इन परंपरागत रूढ़िवादी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए इस्लाम धर्म में महत्वपूर्ण रहस्यवादी आंदोलन सूफी आंदोलन का शुभारंभ हुआ। इन आंदोलनों ने व्यापक आध्यात्मिकता एवं अद्वैतवाद पर बल दिया साथ ही निरर्थक कर्मकांड आडंबर एवं कट्टरपंथ के स्थान पर प्रेम, उदारतावाद, एवं गहन भक्ति को अपना आदर्श बनाया।
सूफी-आंदोलन |
सूफी शब्द का अर्थ :-
- माना जाता है सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द "सूफ" से हुई जो एक प्रकार से ऊनी वस्त्र का सूचक है, जिसे प्रारंभिक सूफी लोग पहना करते थे (अबू नस्त्र अल सिराज की पुस्तक "किताब-उल-लुमा" में किए गए उल्लेख के आधार पर माना जाता है)।
- सफा से भी सूफी की उत्पत्ति मानी जाती है। सफा का अर्थ पवित्रता और शुद्धता से है। इस प्रकार आचार व्यवहार में पवित्र लोग सूफी कहे जाते जाते थे।
- एक अन्य मत के अनुसार हजरत मोहम्मद साहब द्वारा मदीना में निर्मित मस्जिद के बाहर सफा अर्थात मक्का की एक पहाड़ी पर कुछ लोगों ने शरण लेकर अपने को खुदा की आराधना में लीन कर लिया। इसलिए वे सूफी कहलाए।
कैसे हुआ सूफी विचारधारा का आरम्भ :-
- सूफी चिंतक इस्लाम पर इस्लाम का अनुसरण करते थे परंतु भी कर्मकांड का विरोध करते थे।
- इनके प्रभाव का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि उस समय सल्तनत काल उलेमा धर्म वित्त वर्ग में लोगों के कट्टरपंथी दृष्टिकोण की प्रधानता थी। सल्तनत सुल्तान सुन्नी मुसलमान होने के कारण सुन्नी धर्म वक्ताओं के आदेशों का पालन करते थे और साथ ही शिया संप्रदाय के लोगों को महत्व नहीं देते। सूफियों ने इनकी प्रधानता को चुनौती दी और उलेमाओं के महत्व को नकारा।
- प्रारंभिक सूफियों में 'रबिया' (8वीं सदी) एवं मंसूर हल्लाज (10वीं सदी) का नाम महत्वपूर्ण है।
- मंसूर हल्लाज ऐसे पहले सूफी साधक थे जो स्वयं को "अनलहक" घोषित कर सूफी विचारधारा के प्रतीक बने। सूफी संसार में सबसे पहले इब्नुल अरबी द्वारा दिए गए सिद्धांत "वहदत-उल-वुजूद" का उलेमाओं ने जमकर विरोध किया।
- "वहदत-उल-वुजूद" का अर्थ है ईश्वर एक है और वह संसार की सभी वस्तुओं का निमित्त है। इस प्रकार "वहदत-उल-वुजूद" एकेश्वरवाद का समानार्थी है।
सूफी संत की विचारधारा :-
- सूफी संत ईश्वर को प्रियतमा एवं स्वयं को प्रियतम मानते थे।
- उनका विश्वास था कि ईश्वर की प्राप्ति प्रेम संगीत से की जा सकती है अतः सूफियों ने सौंदर्य एवं संगीत को अधिक महत्व दिया।
- सूफी गुरु को अधिक महत्व देते थे क्योंकि वह गुरु की ईश्वर प्राप्ति के मार्ग का पथ प्रदर्शक मानते थे।
- सूफी संत भौतिक एवं भोग विलास से युक्त जीवन से दूर सरल-सादे संयम पूर्ण जीवन में आस्था रखते हैं।
भारत में सूफी आंदोलन :-
- प्रारंभ में सूफी आंदोलन खुरासान प्रांत के आसपास विशेषकर बल्क शहर एवं इराक तथा मिस्र में केंद्रित रहा।
- भारत में इस आंदोलन का आरंभ दिल्ली सल्तनत से पूर्व ही हो चुका था 11वीं एवं 12वीं शताब्दी में लाहौर एवं मुल्तान में कई सूफी संतों का जमघट हुआ मुस्लिम स्त्रोत के आधार पर करीब 125 धर्म संघों के अस्तित्व की बात कही जाती है।
- अबुल फजल ने आईने अकबरी में करीब 14 सूफी सिलसिले के बारे में उल्लेख किया है। इनमें से केवल दो सिलसिलों का गहरा प्रभाव भारतीय जनजीवन पर पड़ा।
- जो सूफी संतों से शिष्यता ग्रहण करते थे उन्हें शुरीद कहा जाता था। सूफी जिन आश्रमों में रहते थे उन्हें खनकाह व मठ कहा जाता था।
- शेख मूसा नामक प्रसिद्ध सूफी सदैव स्त्री वश में रहते थे।
सूफी को परम पद प्राप्त करने से पूर्व 10 अवस्थाएँ :-
- एक सूफी को परम पद प्राप्त करने से पूर्व 10 अवस्थाओं से गुजरना पड़ता था। वे थें :-
- तौबा (पश्चाताप),
- बजा (संयम),
- तबाकुल (प्रतिज्ञा),
- जुहद (भक्ति),
- फग्र (निर्धनता),
- सब्र (संतोष),
- रिजा (आत्मसमर्पण),
- शुक्र (आभार),
- खौफ (डर),
- रजा (उम्मीद) आदि से गुजरना पड़ता था।
शिक्षाओं के प्रचार की भाषा :-
- सूफी संतों ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार जनसाधारण की भाषा में किया।
- उनके प्रयत्नों से हिंदी, उर्दू के साथ अन्य प्रांतीय भाषाओं का भी विकास हुआ।
सूफी धर्म संघ :-
- सूफियों के धर्म संघ "बा-शरा" (इस्लामी सिद्धांत के समर्थक) और "बे-शरा" (इस्लामी सिद्धांत से बंधे नहीं) में विभाजित थे। भारत में दोनों मतों के लोग थे
- भारत में चिश्ती एवं सुहरावर्दी सिलसिले की जड़ें काफी गहरी थी।
सूफी संप्रदाय और उसके संस्थापक:-
संप्रदाय |
संस्थापक |
चिश्ती संप्रदाय |
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (12वीं शताब्दी) |
सुहरावर्दी संप्रदाय |
शिहाबुद्दीन सुहारवर्दी (12वीं शताब्दी) |
कादिरी संप्रदाय |
शेख अब्दुल कादिर जिलानी (16वीं शताब्दी) |
शत्तारी संप्रदाय |
शाह अब्दुल शत्तारी (15वीं शताब्दी) |
फिरदौसी संप्रदाय |
बदरुद्दीन |
नक्शबन्दी संप्रदाय |
ख्वाजा बाकी विल्लाह (16वीं शताब्दी) |
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