पावर ऑफ पॉजिटिविटी
अपने दिमागी क्षमता बढ़ाने के लिए आशावाद को अपनाएं अपने दिमाग की क्षमता का अधिकतम इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इस में सकारात्मक सोच काफी मदद करती है।
यह सत्य है कि दिमाग की पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन कई बार सीमित क्षमता का भी पूरा दोहन नहीं हो पाता है। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का मानना है कि आशावाद और सकारात्मक सोच इसमें आपकी मदद कर सकता है।
फोब्स में प्रकाशित एक लेख में डेवलपमेंटल मल्युक्लियर बायोलॉजिस्ट और बेस्टसेलिंग लेखक जॉन मैडीना कहते हैं कि हम जितना जीते हैं इंसानी दिमाग इतने लंबे समय तक काम करने के लिए नहीं बना है। हमारे पूर्वज याने आदिमानव लाखों वर्षों तक अधिकतम 30 वर्ष की उम्र तक पहुंच पाते थे और उनके दिमाग की उम्र उससे भी पहले पूरी हो जाती थी।
मेडिना कहते हैं कि हम अपने दिमाग के सोचने समझने के तंत्र का अधिकतम इस्तेमाल लगभग 24 वर्ष की उम्र तक कर चुके होते हैं। इस उम्र के बाद यह क्षमता घटने लगती हैं। लेकिन अच्छी खबर यह है कि अगर आप खुश रहते हैं, सकारात्मक और आशावादी रहते हैं और अपने जीवन में रचनात्मकता बनाए रखते हैं, तो आप इस क्षमता के घटने की गति को कम कर सकते हैं।
दिमाग की क्षमता बेहतर बनी रहे और सोचने समझने की में बढ़ती उम्र के साथ परेशानी ना हो इसके लिए बहुत जरूरी है कि हम आशावादी बने रहें। यह सोचे कि जब बुरी चीजें हमेशा नहीं रहती। अच्छा वक्त भी वापस आएगा।
अन्य मानसिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया रखने वाला व्यक्ति नकारात्मक रवैया वाले व्यक्ति की तुलना में कहीं ज्यादा होशियार हो सकता है।
जॉन मैडीना कहते हैं कि आशावाद सिर्फ हमारा तनाव ही कम नहीं करता, बल्कि दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन के उत्पादन में भी मदद करता है। डोपामाइन कार की चाबी की तरह है, चाबी लगाइए और कार चल पड़ती हैं। इसी तरह डोपामाइन की मौजूदगी दिमाग में खुशी के भाव को चलाती रहती है।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हम उम्र के तीसरे दशक में पहुंचते हैं दिमाग डोपामाइन बनाना कम कर देता है। लेकिन खुश रहने, प्रेरित महसूस करने के लिए यह जरूरी है। आशावाद इसमें मदद कर सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी के प्रति आभार व्यक्त करने से, सराहना करने-सुनने से सकारात्मक लोगों से मिलने से आपका आशावाद बढ़ता है।
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