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भारत में समाचार पत्रों का इतिहास

भारत में समाचार पत्रों का इतिहास


यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ हैं समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। 

भारत में प्रिंटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है। 

1556 में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी।  

इस प्रकार भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना 1556 में गोवा में हुई।


1684 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी भारत में प्रिंटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की।  

भारत का पहला समाचार पत्र निकालने का श्रेय जेम्स ऑगस्टस हिक्की को मिला, जिसने 1780 ई. में, बंगाल गजट (Bangal Gazette) का प्रकाशन किया। जिसकी भाषा- अंग्रेजी थी। 



पर सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। 

{भारत में पहला समाचार पत्र कंपनी के एक असंतुष्ट सेवक विलियम वोल्टस 1766 से निकालने का प्रयास किया, पर असफल रहा।}

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हिक्की तथा बर्किंघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया। 

इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन हुआ। 

बंगाल में -- कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरियंटल स्टार। 

मद्रास में -- मद्रास कैरियर, मद्रास गजट।  

मुंबई में -- हेराल्ड, बॉम्बे गजट आदि। 


1818 में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किंघम ने "कलकत्ता जनरल" का संपादन किया। 

बर्किंघम कि वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिंब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप बर्किंघम की ही देन है। 



पहला भारतीय-अंग्रेजी समाचार पत्र 1816 ई. में कोलकाता में गंगाधर भट्टाचार्य के द्वारा ---- बंगाल गजट नाम से निकाला गया। "यह सप्ताहिक समाचार पत्र था।" 

बंगाली भाषा का पहला समाचार पत्र 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व में------  दिग्दर्शन प्रकाशित हुआ। यह मासिक पत्र था, जो अल्पकालीन सिद्ध हुआ।  


1821 में बंगाली भाषा में "साप्ताहिक समाचार पत्र" ----- संवाद कौमुदी का प्रकाशन हुआ। इस समाचार पत्र का प्रबंधन राजा राममोहन राय ने किया। 

राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोध स्वरूप समाचार पत्र ------ चंद्रिका का मार्च 1822 में प्रकाशन किया। 

इसके अतिरिक्त फारसी भाषा में ----- मिरातुल अखबार एवं 

अंग्रेजी भाषा में ------ ब्राह्मनिकल मैगजीन का प्रकाशन किया। 

1830 ई. में राजा राम मोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में ------- बंगदूत का प्रकाशन आरंभ हुआ। 

बम्बई से 1831 ई. में गुजराती भाषा में ------ जामे जमशेद तथा 

1851 ई. में -------- रास्त गोफ्तार एवं अखबारे सौदागर का प्रकाशन हुआ।


1857 के बाद भारत में समाचार पत्रों की स्थिति:-

1857-58 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजाति आधार पर विभाजित किया गया है। 

      • अंग्रेजी समाचार पत्र एवं 

      • भारतीय समाचार पत्र 


अंग्रेजी समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के अंतर होता था।

जहां अंग्रेजी समाचार पत्र को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाएं उपलब्ध थी, वहीं भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा था। 


1857 ई. के विद्रोह के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 

अब वे और अधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गए। 

इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल का ग्रास बन गए। 

वहीं दूसरी ओर जनवरी, 1877 में दिल्ली में हुए दिल्ली दरबार पर सरकार ने फिज़ूलखर्ची की। परिणामस्वरुप लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के खिलाफ भारतीय अखबारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। 

1878 ई. में "देसी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम" (The Vernacular Press Act, 1878) द्वारा लिटन ने भारतीय समाचार पत्रों को सीधे नियंत्रण में लेना चाहा। 

इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायालय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। 

वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को "मुँह बंद करने वाला अधिनियम" भी कहा जाता है।

इस अधिनियम से भारतीय समाचार पत्रों की स्वतंत्रता नष्ट हो गई। 

वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण समाचार पत्र सोम प्रकाश को लक्ष्य कर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह नियम मात्र सोम प्रकाश पर ही लागू हो सका। 


लिटन के वर्नाकुलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए अमृत बाजार पत्रिका (समाचार पत्र) जो बंगला भाषा की थी अंग्रेजी में परिवर्तित हो गई।  

इस एक्ट को 1882 ई. में लॉर्ड रिपन ने रद्द कर दिया। 


बंगाल विभाजन के कारण समाचार-पत्र:-

लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन के कारण देश में उत्पन्न अशांति तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अखबारों के द्वारा सरकार की आलोचना बढ़ने लगा। 

सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई. का समाचार-पत्र अधिनियम लागू किया। 

इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जिस अखबार से हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने और संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा। 

इस अधिनियम द्वारा 9 समाचार-पत्रों के विरुद्ध मुकदमे चलाये गए एवं 7 के प्रेस को जब्त कर लिया गया। 


1910 ई. के भारतीय समाचार पत्र अधिनियम में यह व्यवस्था की गई इस समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम ₹500 और अधिक से अधिक ₹2000 पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा। 

इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जप्त करने का अधिकार होगा तथा दूसरा पंजीकरण के लिए सरकार को ₹1000 से ₹10000 तक की जमानत राशि का अधिकार होगा। 

इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नजर में किसी आपत्तिजनक सामग्री को संपादित प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं समस्त प्रतियां जब्त करने का अधिकार होगा। 


प्रेस इंक्वायरी कमेटी:-

1921 ई. में तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में "प्रेस इंक्वायरी कमेटी" नियुक्त की गई। समिति के सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियम को समाप्त किया गया। 



सविनय अवज्ञा आंदोलन को दबाने के लिए :-

1931 में "इंडियन प्रेस इमरजेंसी अधिनियम" द्वारा 1910 के प्रेस अधिनियम को फिर से लागु कर दिया गया। 

साथ 1931 के अधिनियम को विस्तृत कर "क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट" अथवा अपराधिक संशोधन अधिनियम लागू किया गया।

इस अधिनियम को गांधी जी द्वारा चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन को दबाने के सरकार को अधिक शक्ति प्राप्त हो गई। 

1947 में भारत सरकार ने प्रेस इंक्वायरी कमिटी की स्थापना की जिसने प्रेस से जुड़े हुए कानूनों की समीक्षा की। 


समाचार-पत्रों पर लगने वाले प्रतिबंध:- 

समाचार-पत्रों पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 

1) 1799 ई. में वेलेयली द्वारा पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम (The Censorship Of The Press Act) 


2) जान ऐडम्स द्वारा 1823 ई. में अनुज्ञप्ति नियम (The Licensing Regulations Act Of -1823) लागू किया गया। 

"ऐडम्स द्वारा समाचार पत्र पर लगे प्रतिबंध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अखबार बंद हो गया। 


3) 1878 ई. में देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम (The Vernacular Press Act, 1878) द्वारा भारतीय समाचार पत्रों को सीधे नियंत्रण में लेना चाहा। 

इस अधिनियम से भारतीय समाचार पत्रों की स्वतंत्रता नष्ट हो गई। 

वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण समाचार पत्र सोम प्रकाश को लक्ष्य कर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह नियम मात्र सोम प्रकाश पर ही लागू हो सका।

4) 1910 ई. के भारतीय समाचार पत्र अधिनियम में यह व्यवस्था की गई इस समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम ₹500 और अधिक से अधिक ₹2000 पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा। 

इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जप्त करने का अधिकार होगा तथा दूसरा पंजीकरण के लिए सरकार को ₹1000 से ₹10000 तक की जमानत राशि का अधिकार होगा। 

इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नजर में किसी आपत्तिजनक सामग्री को संपादित प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं समस्त प्रतियां जब्त करने का अधिकार होगा।


5) 1931 में "इंडियन प्रेस इमरजेंसी अधिनियम" द्वारा 1910 के प्रेस अधिनियम को फिर से लागु कर दिया गया। 

साथ 1931 के अधिनियम को विस्तृत कर "क्रिमिनल अमेंडमेंट एक्ट" अथवा अपराधिक संशोधन अधिनियम लागू किया गया।



प्रेस की स्वतंत्रता:-

लॉर्ड विलियम बेंटिक प्रथम गवर्नर जनरल था जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। 

कार्यवाहक गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकाफ ने 1823 के (The Licensing Regulations Act Of -1823) प्रतिबंध को हटा कर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलायी। 

अतः चार्ल्स मेटकाफ को भारतीय समाचार पत्रों का मुक्तिदाता भी कहा जाता है। 

मैकॉले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 



समाचार पत्रों एवं इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहां एक ओर वेलेजली, मिंटो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग, लॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर बैंटिक, लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकॉफ, मैकाले एवं लॉर्ड रिपन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 


"हिन्दू पैट्रियट" के संपादक क्रिस्टोदास पाल को भारतीय पत्रकारिता का "राजकुमार" कहा जाता है।





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