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शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रमुख आधार

 

* शिवाजी की शासन व्यवस्था *


  • शिवाजी का प्रशासन
  • शिवाजी का प्रांतीय प्रशासन
  • शिवाजी की सैन्य व्यवस्था
  • शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था
  • छत्रपति शिवाजी के अष्टप्रधान

  • शिवाजी के राजस्व स्त्रोत

शिवाजी


  • शिवाजी महान विजेता के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी था। उनकी प्रशासनिक व्यवस्था काफी कुछ दक्षिण राज्यों एवं मुगल प्रशासन से प्रभावित थी। 
  • मध्यकालीन शासकों की तरह शिवाजी के पास भी शासन की संपूर्ण अधिकार सुरक्षित थे। 
  • शासन कार्यों में सहायता के लिए शिवाजी ने मंत्रियों की एक परिषद जिसे अष्टप्रधान कहते थे की व्यवस्था की थी। 
  • यह मंत्री सचिव के रूप में कार्य करते थे, वे प्रत्यक्ष रूप से न तो कोई निर्णय ले सकते थे और न ही नीति निर्धारित कर सकते थे। उनकी भूमिका मात्र परामर्शकारी होती थी, किंतु मंत्रियों से परामर्श के लिए शिवाजी बाध्य नहीं थे। 
  • शिवाजी ने किसी भी मंत्री के पद को अनुवांशिक नहीं होने दिया। 

शिवाजी के अष्टप्रधान :-

        1. पेशवा 
        2. सर-ए-नौबत (सेनापति) 
        3. मजमुआदार या अमात्य 
        4. वाकयानवीस 
        5. शुरुनवीस या चिटनिस 
        6. दबीर या सुमंत (विदेश मंत्री) 
        7. सदर या पंडितराव 
        8. न्यायाधीश

पेशवा:-

  • अष्टप्रधान में पेशवा का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण सम्मान का होता था। 
  • यह राजा का विश्वसनीय होता था 
  • पेशवा राज्य के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की देखरेख करता था तथा राजा की अनुपस्थिति ने राज्य की बागडोर भी संभालता था। 
  • उसका वेतन 15000 हूण प्रतिवर्ष था। 


सर-ए-नौबत (सेनापति):- 

  • इसका मुख्य कार्य सेना में सैनिकों की भर्ती, संगठन एवं अनुशासन और साथ ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती आदि था। 


मजमुआदार या अमात्य:- 

  • अमात्य राज्य के आय-व्यय का लेखा-जोखा तैयार कर उस पर हस्ताक्षर करता था। 
  • उसका वेतन 12000 हूण प्रतिवर्ष था। 



वाकयानवीस:- 

  • यह सूचना, गुप्तचर  एवं संधि-विग्रह  विभागों अध्यक्ष होता थाऔर घरेलू मामलों की भी देख-रेख करता था। 


शुरुनवीस या चिटनिस:- 

  • राजकीय पत्रों को पढ़कर उसकी भाषा शैली को देखना, परगनों  के हिसाब-किताब की जांच करना आदि इसके प्रमुख कार्य थे। 


दबीर या सुमंत (विदेश मंत्री):- 

  • मुख्य कार्य विदेशों से आए राजदूतों का स्वागत करना एवं विदेशों से संबंधित संधि-विग्रह की कार्यवाही में राजा से सलाह मशविरा करना आदि। 


सदर या पंडितराव:- 

  • मुख्य कार्य धार्मिक कार्यों के लिए तिथि को निर्धारित करना। 
  • गलत काम करने एवं धर्म को भ्रष्ट करने वालों के लिए दंड की व्यवस्था करना। 
  • ब्राह्मणों में दान को बटवाना एवं प्रजा के आचरण को सुधारना आदि थे। इसे दानाध्यक्ष भी कहा जाता था। 

न्यायाधीश:- 

  • सैनिक तथा असैनिक सभी प्रकार के मुकदमों को सुनने एवं निर्णय करने का अधिकार इसके पास होता था। 



उपयुक्त अधिकारियों में अंतिम दो अधिकारी पंडितराव एवं न्यायाधीश के अतिरिक्त अष्टप्रधान के सभी पदाधिकारियों को समय-समय पर सैनिक कार्यवाहियों में भी हिस्सा लेना होता था। 

सेनापति के अतिरिक्त सभी प्रधान ब्राम्हण थे। 

इसके अतिरिक्त राज्य के पत्र व्यवहार की देखभाल करने वाले और मुंशी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति होते थे। 

शिवाजी के समय बालाजी आवजी -चिटनीस के रूप में और नीलोजी -मुंशी के रूप में सम्मानित थे। 



प्रांतीय शासन:- 

शिवाजी ने शासन की सुविधा के लिए "स्वराज" कहे जाने वाले विजित प्रदेशों को चार प्रांतों में विभक्त किया :-

      1. उत्तरी प्रांत 
      2. दक्षिणी-पश्चिमी प्रांत 
      3. दक्षिणी-पूर्वी प्रांत 
      4. दक्षिणी प्रांत 


प्रत्येक प्रांत महलों में विभक्त था --------------> इसका अधिकारी सर हवलदार होता था। 

महलों की तरफ में बांटा गया था ---------------> इसका अधिकारी हवलदार होता था।


मौजा (गांव) सबसे छोटी इकाई थी -------------> इसका प्रमुख पाटिल या पटेल नामक अधिकारी होते थे। 

"पाटिल या पटेल का सहायक कुलकर्णी होता था।"


1) उत्तरी प्रांत:- इसके अंतर्गत सूरत से लेकर पूना तक का क्षेत्र सम्मिलित था। 

  • शिवाजी ने यहां का शासन पेशवा मोरो त्रिंबक पिंगले को सौंपा था। 


2) दक्षिणी पश्चिमी प्रांत:- इसमें समुद्र तटीय प्रदेशों एवं तत्कालीन मुंबई के दक्षिण कोंकड़ का क्षेत्र सम्मिलित था। 

  • शिवाजी ने सचिव अन्नाजी दत्तो को यहां का शासन सौंपा था। 

3) दक्षिणी पूर्वी प्रांत:- सतारा, कोल्हापुर, बेलगांव एवं थारवार क्षेत्र वाले इस क्षेत्र का शासन शिवाजी ने मंत्री दत्ताजी पंत को सौंपा था। 


4) दक्षिणी प्रांत:- इसमें जिंजी और उसके आसपास का प्रांत सम्मिलित था। 

  • यह क्षेत्र रघुनाथ पंत हनुमंते अधीन था।  


  • शिवाजी ने अपने दुर्गों की सुरक्षा के लिए हवलदार, सरेनौबत एवं सुबनिस नाम के अधिकारियों की व्यवस्था की थी। 


      • हवलदार--- किले की आंतरिक व्यवस्था को देखता था। 
      • सरेनौबत --- किले की सेना का नेतृत्व एवं उन पर नियंत्रण रखता था। 
      • सुबनिस --- किले की अर्थव्यवस्था, पत्र व्यवहार एवं भंडार आदि की देखभाल करता था। 


सर-ए-नौबत एवं हवलदार का पद प्रायः मराठों को और सुबनिस का पद ब्राह्मणों एवं कायस्थों को प्रदान किया जाता था। 

स्वराज प्रदेश सीधे शिवाजी के अधीन था। 

 


सैन्य व्यवस्था:-

  • शिवाजी उन शासकों में से थे जिन्हें राज सत्ता का भोग वरदान में नहीं प्राप्त हुआ था, इन्हें शून्य से मराठा राज्य की स्थापना तक कठिन श्रम करना पड़ा .
  • जिसके लिए एक शक्तिशाली सेना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य थी। 

शिवाजी की सेना तीन महत्वपूर्ण भागों में विभक्त थी :-

        1. पागा सेना  
        2. सिलहदार एवं 
        3. पैदल सेना 


  • शिवाजी की मृत्यु के समय उनकी सेना में लगभग 45000 पागा सैनिक, 60000 घुड़सवार एवं लगभग एक लाख पैदल सैनिक थे। 



1) पागा सेना:-

  • यह शिवाजी की सेना का सबसे महत्वपूर्ण अंग था। शिवाजी के इस नियमित सेना के घुड़सवारों को व्यक्तिगत घुड़सवार या राजकीय घुड़सवार कहा जाता था। 
  • शिवाजी की सेना श्रेणियों में विभाजित थी :-

      • 25 साधारण सैनिकों के ऊपर ------- एक हवलदार 
      • 5 हवलदार के ऊपर ---------एक जुमलादार 
      • 10 जुमलादारों के ऊपर -------एक हजारी एवं 
      • 5 एक हजारियों के ऊपर -------- एक पांच हजारी होता था। 

  • पागा सेना सर-ए-नौबत के अधीन होता था। 
  • इन्हें राजा की ओर से शस्त्र दिए जाते थे। 


2) सिलहदार :-

  • अस्थाई घुड़सवारों का दल सिलहदार सेना का दूसरा भाग था। 
  • इस श्रेणी के सैनिकों को अपना घोड़ा एवं साजो सामान के सभी खर्च स्वयं उठाने पड़ते थे। 
  • सरकार की ओर से वेतन न प्राप्त करने वाली सेना की टुकड़ी को तभी बुलाया जाता था जब इसकी आवश्यकता होती थी। 
  • इन सैनिकों को युद्ध के समय लड़ाई भत्ता मिलता था। 



3) पैदल-सेना :-

  • इनके साजो-सामान एवं हथियारों पर राज्य के द्वारा काफी धन खर्च किया जाता। 
  • पैदल सेना में भी अधिकारियों का पद विभाजित किया गया था। 


        • नौ सैनिकों या पाइकों का अधिकारी ---------नायक 
        • दस नायकों का अधिकारी -----------एक हवलदार 
        • दो या तीन हवलदारों का अधिकारी ------एक जुमलादार  
        • 10 जुमलादारों का अधिकारी -------- एक हजारी 
        • 7 एक हजारियों का अधिकारी -------- एक सात हजारी होता था 


  • शिवाजी की सेना में शिवाजी की सेना में गुप्तचर, तोपखाना एवं समुद्रों बेड़ों की भी व्यवस्था थी। 
  • सेना के साथ युद्ध में स्त्रियों का जाना वर्जित था। 



राजस्व के स्त्रोत:-

  • राज्यों के प्रमुख स्रोतों के रूप में "भूमिकर", "चौथ" एवं "सरदेशमुखी" का प्रचलन था। 
  • इसके अतिरिक्त व्यापार कर, उद्योग कर, युद्ध में प्राप्त धन, भेंट आदि भी राजस्व के स्रोत थे। 


भूमिकर:- 

  • शिवाजी की यह व्यवस्था "मलिक अंबर" की कर व्यवस्था पर आधारित थी। 
  • शिवाजी ने रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर काठी एवं मानक छड़ी के प्रयोग को आरंभ किया। 
          • 20 छड़ी --------- एक बीघा;
          • 120 बीघा ------- एक चावर 

  • शिवाजी के समय में उपज का 33% भाग राजस्व के रूप में लिया जाता था जो कालांतर में बढ़कर 40% हो गया। 
  • बंजर-भूमि पर से अल्प मात्रा में कर लिया जाता था। 
  • राजस्व को नकद एवं उपज दोनों रूपों में वसूला जाता था। 
  • शिवाजी ने जमींदारी एवं जागीरदारी की व्यवस्था का विरोध करते हुए "रैय्यतवाड़ी" व्यवस्था को अपनाया। 


चौथ:-

  • एक प्रकार का कर था जो मुगल क्षेत्रों की भूमि व पड़ोसी राज्यों की आय का चौथा हिस्सा होता था, जिसे वसूल करने के लिए मराठी सेना को उस क्षेत्र पर आक्रमण करना पड़ता था। 


सरदेशमुखी:- 

  • इस कर को शिवाजी इसलिए वसूल करते थे क्योंकि वह महाराष्ट्र में पुश्तैनी सरदेशमुखी थे। 
  • यह कर राज्यों की आय का 1/10 भाग होता था। 





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