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Chhattisgarh me Hathi Samasya aur Samadhan (छत्तीसगढ़ में हाथी समस्या व समाधान)

* छत्तीसगढ़ में हाथी समस्या व समाधान *

        

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        छत्तीसगढ़ में हाथियों द्वारा उत्पाद विगत कुछ वर्षों से विकट समस्या के रूप में उभर कर आया है। हाथियों के आतंक ने ग्रामीणों की नींद उड़ा रखी है। छत्तीसगढ़ के कुल 11 जिले हाथियों की समस्या से प्रभावित हैं। यह हाथी प्रत्येक वर्ष लाखों रुपए की फसलों तथा चल-अचल संपत्तियों के साथ-साथ सैकड़ों जाने छीन लेते हैं। उन्हें रोकना सरकार के लिए चुनौती बन चुकी है किंतु मंतव्य का विषय यह है कि क्यों हाथी जैसा शांति प्रिय प्राणी इतना हिंसात्मक हो गया है तथा कुछ वर्षों से ही क्यों इस समस्या ने जन्म लिया है। हाथियों के हिंसात्मक होने के कारण का समाधान कर लेने पर ही उनके हिंसा से निदान पाया जा सकता है। 


        हमने अपने इतिहास में देखा है कि भारत एक हाथी बहुल देश हैं। बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ झारखंड, कर्नाटक, केरल आदि राज्य अधिकतर क्षेत्र वनाच्छादित होने के कारण हाथियों का प्राकृतिक गृह रहा है। विश्व में सबसे पहले भारतीयों ने ही हाथियों से मित्रता कर उन को पालतू बनाया तथा उन से काम में सहयोग लिया। भारत प्राचीन समय में विश्व का एकमात्र हाथी निर्यातक राष्ट्र था।  मगध साम्राज्य के उदय में गज सेना का प्रमुख योगदान रहा। हिंदी फिल्मों में भी हम देखते हैं कि हाथी एक बुद्धिमान प्राणी हैं और मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र भी रहा हैकिंतु कुछ समय से आधुनिक होने की होड़ में हम मनुष्यों ने प्राकृतिक वस्तुओं का इतना अधिक दोहन किया कि मनुष्य का मित्र अब शत्रु बन चुका है। 


हाथियों के इस प्रकार हिंसात्मक होने के बहुत सारे कारण हैं:

वनों का घटना:

        मनुष्य ने आधुनिकता के नाम पर पिछले 100 वर्षों में वनों का इतना नाश किया है जितना पिछले 10000 वर्षों में भी नहीं हुआ हो। जिस प्रकार मनुष्य अपने रहने के लिए घर बनाते हैं, उसी प्रकार वन हाथियों का प्राकृतिक आवास है। जिसके कम होने पर उनके अस्तित्व पर संकट आ गया है। इससे वे क्रूद्ध है तथा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हिंसात्मक हो गए हैं। 

 

वनों के भीतर ही निवास:

        खनिजों की खोज व उनके दोहन के लिए मनुष्य निरंतर वनों को काटता गया तथा वनों में रहने वाले आदिवासी समुदाय वनों का नाश कर वनों में ही रहने लगे। जिससे हाथियों व अन्य जानवरों के रहवास का अतिक्रमण हो रहा है। 

 

नदियों का सूखना:

        वातावरणीय परिवर्तन के कारण तथा वनों की अधिक कटाई के कारण नदियां मौसमी बनकर रह गई है, जिसमें केवल वर्षा ऋतु में ही पानी रहता है तथा गर्मी में पूर्णता सूख जाते हैं। जिसके कारण हाथी जंगलों से बाहर आकर अन्य जल संरक्षित क्षेत्रों पर आने को विवश हैं।

 

खाने पीने की चीजों की समस्या:

        क्योंकि वनों का निरंतर नाश हो रहा है कथा हाथियों के लिए गर्मी आते तक जंगल में खाने की चीजों का अकाल पड़ जाता है। जिससे वह अनाज की खोज में गांवों में घुसकर अनाज भंडार से अनाज खा जाते हैं तथा आर्थिक एवं शारीरिक क्षति पहुंचाते हैं।

 

मानवीय कृतियोंसे हाथियों की मृत्यु:

        हाथी एक बुद्धिमान प्राणी है तथा सदा एक दल में रहता है। मनुष्य द्वारा जंगलों में बिजली पहुंचाने बिजली के तार बिठाए गए हैं, जिसके चपेट में आने से हाथियों की मृत्यु करंट से हो जाती है। जिससे हाथी गुस्से में हिंसात्मक कार्य करता है। 

 

        इन सभी कारणों से हाथियों का दल अत्यंत क्रोधित हो गया है, और गांवों में घुसकर अनाज खा कर पुनः जंगल लौट जाता हैं। गर्मी में जब जंगलों में पानी व खाद्य पदार्थों का संकट गहराता है तो वह शहरों की ओर तथा बांधों की ओर बढ़ते हैं। छत्तीसगढ़ के कुल 11 जिले हाथियों के संकट से जूझ रहे हैं। रायपुर हाथी के लिए एक प्राकृतिक स्थान नहीं रहा किंतु पिछले 2 वर्षों में यह देखा जा रहा है कि पानी और खाने की तलाश में हाथी रायपुर जिले के अंदर प्रवेश कर गये जिन्हें बड़ी मुश्किल से वापस भेजा जा सका है। हाथियों को रोकने के लिए सरकार द्वारा कुछ कार्य किए गए हैं।

 

गजराज परियोजना:

        इस परियोजना के अंतर्गत हाथियों के ग्रामीण क्षेत्रों में आक्रमण से बचाव के लिए लगभग 600 ग्रामों में 1000 किलोमीटर लंबाई में सोलर फेंसिंग लगाए जाएंगे। वन क्षेत्रों में हाथियों के लिए रुचिकर भोजन वाले पेड़ पौधे जैसे -बांस आदि लगाए जाएंगे। जंगलों में हाथियों के लिए स्टॉप डैम और तालाब बनाया जाएगा। हाथी मित्र दल के माध्यम से प्रचार प्रसार किया जाएगा। हाथियों के समस्या से निपटने के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय हाथी प्रबंधन समिति गठित की जाएगी।

 

        पिछले वर्ष हाथियों को रोकने के लिए कर्नाटक से प्रशिक्षित हाथियों को मंगवाया गया था जो जंगली हाथियों को गांवों में घुसने से रोकता था तथा उन्हें वापस जंगल भेज देता था इस प्रकार की योजनाएं सरकार द्वारा चलाई गई है

 

अन्य उपाय:

        छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपने वन अधिनियम में कुछ परिवर्तन कर वन्यजीवों को पालतू बनाया जाने की छूट देनी चाहिए। इससे हाथी को प्रशिक्षित किया जा सकेगा तथा कर्नाटक से हाथियों के लाने तथा खर्च उठाना नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार टाइगर प्रोजेक्ट के तहत हाथी प्रोजेक्ट चलाया जा सकता है।  चुकी छत्तीसगढ़ में वर्तमान में लगभग 250-300 हाथी हैं। अतः उन्हें सही तरह आवास दिलाना आवश्यक है। जिससे गांवों में ना घुस पाए हाथियों को रेडियो कॉलर लगाकर उनके संचरण पर दृष्टि रखकर उनके गांवों में घुसने से पहले उन्हें रोका जा सकता है।

        चूँकि हाथी समस्या हम मनुष्य द्वारा उत्पन्न समस्या है अतः हाथियों को दोष देने से अच्छा है कि हाथियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति जंगलों के भीतर ही एक निश्चित स्थान पर कर दिया जाए। साथ ही उस स्थान पर कोइ अन्य मानवीय क्रियाओं को पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया जाए।  हाथी एक शांतिप्रिय प्राणी है तथा हमारे लिए यही अच्छा है कि वह हिंसात्मक ना होने पाए। 


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