Ticker

6/recent/ticker-posts

स्पीकर की भूमिका


स्पीकर की भूमिका

Speaker-Ki-Bhumika
Speaker-Ki-Bhumika


अध्यक्ष के पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है। अगर संसद सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो अध्यक्ष सम्पूर्ण सदन का प्रतिनिधित्व करता है। 


अध्यक्ष संसदीय लोकतंत्र का वास्तविक संरक्षक माना जाता है, इस कारण अध्यक्ष का नाम राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के तत्काल पश्चात ही रखा गया है। 


अध्यक्ष सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है। अध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सदन की गरिमा बनाए रखें, क्योंकि दूरदर्शन पर संसद की कार्यवाही का प्रसारण होने से इसे लाखों-करोड़ों लोग देखते हैं। इस कारण अध्यक्ष की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। 


यद्यपि अध्यक्ष सदन में कम ही बोलता है, लेकिन वह जब भी कुछ बोलता है तो संपूर्ण सदन के लिए बोलता है।  


भारतीय लोकतंत्र में अध्यक्ष की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। लोकसभा अध्यक्ष के संबंध संदर्भ में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि "अध्यक्ष सदन की गरिमा तथा उसकी स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है, सदन राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए अध्यक्ष एक प्रकार से राष्ट्र की स्वतंत्रता और स्वाधीनता का प्रतीक होता है। 


दरअसल अध्यक्ष सदन के प्रतिनिधियों का मुखिया तथा उनकी शक्तियों और विशेष अधिकारों का अभिभावक होता है। 



लेकिन इतिहास में ऐसे कई महत्वपूर्ण उदाहरण हैं जिन्हें सदन के अध्यक्षों ने महत्वपूर्ण निर्णय लेकर राज्य की राजनीति को प्रभावित किया है। 


अध्यक्ष पर राजनीति दल का एजेंट होने का आरोप:- 

सदन का अध्यक्ष सदन का प्रधान प्रवक्ता होता है। वह सदन की सामूहिक मत का प्रतिनिधित्व करता है। 


दसवीं अनुसूची के तहत सभी संसदीय मामलों में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है जिससे सामान्यतः न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती। इस प्रकार अध्यक्ष सदन में मध्यस्थ के रूप में भी कार्य करता है। हालांकि किहोतो होलोहन बनाम जालिच्चु मामले (1993) में सर्वोच्च न्यायालय का मत था कि दसवीं अनुसूची के तहत सदस्यों की अयोग्यता के संबंध में सदन के अध्यक्ष के निर्णय को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती। 


अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने और उसे विनियमित करने के लिए सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने का कार्य भी करता है। अध्यक्ष को बहस के लिए अवधि आवंटित करने और सदन के सदस्यों को अनुशासित करने का अधिकार है। साथ ही सदन का अध्यक्ष सदन में कामकाज से संबंधित नियमों का अंतिम व्याख्याता भी होता है। अध्यक्ष पद के साथ तमाम अधिकारों और शक्तियों के कारण स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता इस पद के लिए एक अनिवार्य शर्त हो जाती है। 


किंतु इसके बावजूद समय-समय पर अध्यक्ष पद पर राजनीतिक दल का एजेंट होने का आरोप लगता रहा है। 


वर्ष 2006 के जगजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निष्पक्षता के मामले में अध्यक्ष की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगाया था। 


किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामले में सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा था कि ----- "सदन के अध्यक्ष की निष्पक्षता पर संदेश इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि अध्यक्ष का चुनाव और कार्यकाल सदन के बहुमत पर निर्भर करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अध्यक्ष की नियुक्ति के तरीके और कार्यालय संबंधी कुछ संरचनात्मक समस्याएं हैं। जिसका तत्काल निवारण किए जाने की आवश्यकता है"।



इसी तरह राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियों के संचालन के लिए पूरी तरह जवाबदेह होता है। 


विधानसभा अध्यक्ष भी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। 


विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचन होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होना किसी भी लोकतंत्र व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला होती है। 


सदन की व्यवस्था बनाए रखना उसकी जिम्मेदारी होती है और वह सदन के सदस्यों में नियमों का पालन सुनिश्चित कर आता है। 


विधानसभा अध्यक्ष सदन के वाद-विवाद में भाग नहीं लेता बल्कि विधानसभा की कार्यवाही के दौरान अपना निर्णय दिखता है। विधानसभा के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सदन का संचालन करता है दोनों की अनुपस्थिति में सभापति रोस्टर का कोई एक सदस्य यह जिम्मेदारी निभाता है। 


संविधान में यह उपबंध किया गया है कि प्रत्येक विधानसभा का अपना एक पृथक सचिवालय होगा जिसका प्रशासकीय नियंत्रण विधानसभा अध्यक्ष के पास होगा। 


विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार :-

सदस्यता रद्द कर सकता है:- विधानसभा अध्यक्ष किसी भी राज्य में राजनीतिक उठापटक को देखते हुए वर्ष 1985 के पास किए गए दल बदल कानून का सहारा ले कर अध्यक्ष निम्नलिखित स्थितियां उत्पन्न होने पर सदस्यता रद्द कर सकते है:-

  • अगर कोई विधायक खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है। 
  • अगर कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है। 
  • अगर कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता। 
  • अगर कोई विधायक विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है। 
  • संविधान की दसवीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत विधानसभा अध्यक्ष फैसला ले सकता है। 

हालांकि मूलतः इस कानून के तहत विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आखिरी हुआ करता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा की जा सकती है। 


स्पीकर के कार्य:- 

स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने और शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्रीय स्तर पर जहां संसद की व्यवस्था की वहीं राज्यों में विधान सभा के गठन का प्रस्ताव किया। 


इसके साथ ही लोकसभा के संचालन और गरिमा बनाए रखने के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया। लेकिन अब राजनीतिक वैमनस्यता के कारण अध्यक्षों पर सवालिया निशान लगने लग रहे हैं। 


विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध चुनाव होना और उनका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज के उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है, जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है। 

लेकिन दिन प्रतिदिन इसमें गिरावट आती जा रही है। विधानसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का प्रावधान संविधान में है। विधानसभा का गठन होने के बाद उसके प्रथम सत्र में ही विधानसभा सदस्यों द्वारा विधानसभा अध्यक्ष चुना जाता है। अध्यक्ष के अलावा विधानसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी करते हैं, जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका कार्य संभालता है। 


विधानसभा अध्यक्ष के प्रमुख कार्यों में से वे सब के सब कार्य कराते हैं जो  लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। जैसे :-

  • सदन में अनुशासन बनाए रखना, 
  • सदन की कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालन करना, 
  • सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना, 
  • पक्ष और विपक्ष के में समान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना। 


इस प्रकार स्पीकर एक संविधानिक पद होते हुए लोकतंत्र का सजग प्रहरी है, जो प्रत्येक स्थिति में लोकतंत्र की रक्षा करता है। 






Post a Comment

0 Comments

Total Pageviews