Ticker

6/recent/ticker-posts

भारत पर तुर्की आक्रमण

 

भारत पर तुर्की आक्रमण


तुर्क:- तुर्क चीन के उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर रहने वाली एक असभ्य और बर्बर जाती थी। 

उद्देश्य:- इनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना करना था। 

भारत पर आक्रमण करने वाला पहला तुर्की मुसलमान सुबुक्तगीन था। सुबुक्तगीन से अपने राज्य को होने वाले भाभी खतरे का अनुमान लगाते हुए, दूरदर्शी हिंदूशाही वंश के शासक जयपाल ने 2 बार आक्रमण किया। किंतु प्राकृतिक कारणों से उसकी पराजय हुई। 

महमूद-गजनवी


भारत में तुर्की आक्रमण को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं:- 

  • मुहम्मद गजनवी का भारत पर आक्रमण 

  • मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण



मोहम्मद गजनवी:- सुबुक्तगीन के मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मोहम्मद गजनवी गद्दी पर बैठा। इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद गजनवी "सुल्तान" की उपाधि धारण करने वाला पहला तुर्क शासक था। 

उद्देश्य-- इस्लाम धर्म के प्रचार व धन प्राप्ति के उद्देश्य से उसने 1001 से 1026 तक 17 बार भारत पर आक्रमण किया। उसने अपने भारतीय आक्रमण के समय "जेहाद" का नारा दिया और साथ ही अपना नाम "बुत शिकन" रखा। 


महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण (1001 से 1026 ई. तक):- 

999 ई. में जब गजनवी गद्दी पर बैठा तो उसने प्रत्येक वर्ष भारत पर आक्रमण के प्रतिज्ञा ली। उसने कितनी बार आक्रमण किया है यह स्पष्ट नहीं है, किंतु इलियट के अनुसार महमूद गजनवी ने 17-बार भारत पर आक्रमण किया। वे इस प्रकार हैं:-


प्रथम आक्रमण (1001 ई.)

भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों पर आक्रमण किया कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 

द्वितीय आक्रमण (1001-02 ई.)

अपने दूसरे अभियान के अंतर्गत महमूद गजनबी ने सीमांत प्रदेशों के शासक जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया उसकी राजधानी बैहिन्द पर अधिकार कर लिया। जयपाल इस पराजय के अपमान को सहन नहीं कर सका और आग में जल कर आत्महत्या कर ली।

तीसरा आक्रमण (1004 ई.)

महमूद गजनवी ने कच्छ के शासक वाजिरा को दंडित करने के लिए आक्रमण किया महमूद के भय के कारण वाजिरा सिंधु नदी के किनारे जंगल में शरण लेने को भागा और अंत में उसने आत्महत्या कर ली। 

चौथा आक्रमण (1005 ई.)

1005 ईसवी में महमूद गजनबी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिंडा के शासक आनंदपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। 

पांचवां आक्रमण (1007 ई.)

पंजाब में ओहिंद पर महमूद गजनवी ने जयपाल के पुत्र सुखपाल को नियुक्त किया था। सुखपाल ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था और उसे नौशाशाह कहा जाने लगा था। 1007 में सुखपाल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। मोहम्मद गजनवी ने ओहिन्द पर आक्रमण किया और नौशाशाह को बंदी बना लिया। 

छठा आक्रमण (1008 ई.)

महमूद गजनवी ने 1008 में अपने इस अभियान के अंतर्गत आनंदपाल को पराजित किया। बाद में उसने उसी वर्ष कांगड़ी पहाड़ी के स्थित नगरकोट पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में महमूद को अपार धन की प्राप्ति हुई। 

सातवा आक्रमण (1009 ई.)

इस आक्रमण के अंतर्गत महमूद गजनवी ने अलवर राज्य के नारायणपुर पर विजय प्राप्त किया। 

आठवां आक्रमण (1010 ई.)

महमूद ने मुल्तान पर आक्रमण वहां के शासक दाऊद को पराजित कर सदा के लिए अपने अधिन कर लिया। 

नवां आक्रमण (1013 ई.)

अपने नए अभियान के अंतर्गत महमूद गजनबी ने थानेश्वर पर आक्रमण किया। 

दसवां आक्रमण (1013 ई.)

हिंदूशाही शासक आनंदपाल ने नन्दशाह को अपनी नई राजधानी बनाया था। वहां का शासक त्रिलोचन पाल था। महमूद गजनवी के आक्रमण पर त्रिलोचन पाल वहां से भागकर कश्मीर में शरण लिया। तुर्कों ने नन्दशाह में लूटपाट की। 

ग्यारहवां आक्रमण (1015 ई.)

महमूद का यह आक्रमण त्रिलोचन के पुत्र भीमपाल के विरुद्ध था, जो कश्मीर पर शासन कर रहा था। युद्ध में भीमपाल पराजित हुआ।

बारहवां आक्रमण (1018 ई.)

अपने 12वीं आक्रमण में महमूद गजनबी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। उसने बुलंदशहर के शासक हरदत्त को पराजित किया।  उसने महाबन के शासक बुलाचंद पर भी आक्रमण किया। 1919 में उसने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया। वहां के शासक राज्यपाल ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राज्यपाल द्वारा इस आत्मसमर्पण से कालिंजर का चंदेल शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ संधि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार डाला। 

तेरहवां आक्रमण (1020 ई.)

महमूद का 13 आक्रमण 1020 ई. में हुआ। इस अभियान में उसने बारी बुंदेलखंड, किरात तथा लोहकोट को जीत लिया। 

चौदहवां आक्रमण (1021 ई.)

महमूद ने ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया। कालिंजर के शासक गोंडा ने विवश होकर संधि कर ली। 

पन्द्रहवां आक्रमण (1024 ई.)

इस अभियान में महमूद गजनबी ने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात), तथा अहिलवाड़ा (गुजरात) पर विजय  स्थापित की।  

सोलहवां आक्रमण (1025 ई.)

इस सोलहवें अभियान में महमूद गजनवी ने सोमनाथ को अपना लक्ष्य बनाया। प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर स्थित अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। उसके सभी अभियानों में यह अभियान सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। सोमनाथ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने सोमनाथ मंदिर को तोड़ दिया तथा अपार धन प्राप्त किया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिंदुओं की हत्या कर दी। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का अंतिम आक्रमण था। 

सत्रहवां आक्रमण (1027 ई.)


 

इस महमूद गजनबी का अंतिम आक्रमण था। यह आक्रमण मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों में जाटों के विरुद्ध था। इसमें जाट पराजित हुए। 

 

महमूद ने के भारतीय आक्रमण का वास्तविक उद्देश्य धन की प्राप्ति था। वह एक मूर्तिभंजक आक्रमणकारी था।

महमूद के भारत आक्रमण के समय उसके साथ प्रसिद्ध इतिहासकार, गणितज्ञ, भूगोलवेत्ता, खगोलशात्री एवं दर्शनशास्त्र का ज्ञाता तथा "किताब-उल-हिंद" का लेखक अलबरूनी भारत आया। अलबरूनी गजनवी का दरबारी कवि था। 


------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


मुहम्मद गोरी:- शहाबुद्दीन उर्फ मुईनुद्दीन मुहम्मद गोरी ने भारत में तुर्की साम्राज्य की स्थापना की। यह शंसबनी वंश का शासक था। यह गोर क्षेत्र का शासक था, जो गजनी और हिरात के मध्य एक छोटा सा पहाड़ी प्रदेश था। यह क्षेत्र पहले महमूद गजनवी के कब्जे में था, बाद में गोरी साम्राज्य स्वतंत्र हो गया। 


मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण:- मुहम्मद गोरी ने भी भारत पर अनेक बार आक्रमण किया।

मुहम्मद गोरी ने प्रथम आक्रमण 1175 में मुल्तान के विरुद्ध`पर किया।

दूसरे आक्रमण के अंतर्गत गोरी ने 1178 में गुजरात पर आक्रमण किया, यहां पर सोलंकी वंश (चालुक्य) का शासन था। इस वंश के भीम-द्वितीय (मूलराज द्वितीय) ने मुहम्मद गोरी को आबू पर्वत के समीप परास्त किया। संभवतः यह मुहम्मद गोरी की प्रथम भारतीय पराजय थी। 

इसके बाद 1179-86 ई. के बीच उसने पंजाब पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। 1779 में उसने पेशावर को तथा 1185 में सियालकोट को जीता। 


तराईन का प्रथम युद्ध :-

1191 में मुहम्मद गोरी के साथ पृथ्वीराज चौहान का युद्ध तराईन के मैदान में हुआ, जिसे तराईन के प्रथम युद्ध के नाम से जाता है। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी बुरी तरह परास्त हुआ। 



तराइन का द्वितीय युद्ध :- 

1192 में पुनः मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में कन्नौज के राजा जयचंद ने मुहम्मद गोरी साथ दिया, जिसके कारण इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई और उनकी हत्या कर दी गई।  

चंदावर का युद्ध :- 

मुहम्मद गोरी एवं राजपूत नरेश जयचंद के बीच लड़ा गया। जयचंद के पराजय के उपरांत उसकी हत्या कर दी गई। जयचंद की हत्या करने के बाद मोहम्मद गोरी अपने जीते प्रदेशों की जिम्मेदारी कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर वापस गजनी चला गया। 


मुहम्मद गोरी की भारत विजय तथा स्थापित तुर्की राज्य का प्रत्यक्ष विवरण मिन्हास की रचना "तबाकत-ए-नासिरी" में मिलता है। 

ऐबक ने अपनी महत्वपूर्ण विजय के अंतर्गत 1194 ई. में अजमेर को जीतकर वहां पर स्थित जैन मंदिर एवं संस्कृत विश्वविद्यालय को नष्ट कर उनके पर क्रमशः कुवत उल इस्लाम मस्जिद एवं अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया। ऐबक ने 1202-03 में बुंदेलखंड के मजबूत कालिंजर के किले को जिता एवं बिहार पर आक्रमण कर विक्रमशिला एवं नालंदा विश्वविद्यालय पर अधिकार कर लिया। 


1205 ई. में गोरी दोबारा भारत आया और इस बार उसका मुकाबला खोक्खरों से हुआ। उसने खोक्खरों को पराजित कर उनका बुरी तरह हत्या की। इस विजय के बाद मोहम्मद गोरी जब वापस जा रहा था तो मार्ग में 13 मार्च 1206 को उसकी हत्या एक खोक्खर ने कर दी गई। 

उसके शव को गजनी ले जाकर दफनाया गया। गोरी को मृत्यु के बाद उसके गुलाम सरदार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. में गुलाम वंश की स्थापना की। 




Post a Comment

0 Comments

Total Pageviews